WebCrawler

Inflation in India, GDP of India

Inflation in India, GDP of India

प. दीनदयाल उपाध्याय जी और राष्ट्रीय जीवन दर्शन

विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी , प. दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या सिर्फ 52 वर्ष की आयु में 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय के पास रेलगाड़ी में यात्रा करते समय हुई थी। उनका पार्थिव शरीर मुगलसराय स्टेशन के वार्ड में पड़ा पाया गया। भारतीय राजनीतिक क्षितीज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में सभ्यतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिया। अनाकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी दीनदयालजी उच्चकोटि के दार्शनिक थे.किसी प्रकार भौतिक माया-मोह उनको छू तक नहीं सका। वे न देश के प्रधानमंत्री थे, न राष्ट्रपति फिर भी दिल्ली में उनके पार्थिव शरीर को अपने अंतिम प्रणाम करने पांच लाख से भी अधिक जनता उमड़ पड़ी थी. तेरहवीं के दिन प्रयाग में अस्थि-विसर्जन के समय दो लाख से अधिक लोग अपनी भावभीनी श्रध्दांजलि अर्पित करने को एकत्रित हुए थे.

जनसंघ के राष्ट्र जीवन-दर्शन के निर्माता दीनदयाल जी का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुर्नरंचना के प्रयासों के लिए विशुध्द भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना था. दीनदयाल जी के विचारों का अध्ययन करते समय उनकी वैचारिक प्रक्रिया, जिसका आधार संस्कृति तथा धर्म है, को समझना आवश्यक है. यहाँ धर्म का अर्थ व्यापक है. भारतीय संस्कृति में सामाजिक व्यवस्था का संचालन सरकारी कानून से नहीं बल्कि प्रचलित नियमों जिसे धर्मके नाम से जाना जाता था, के द्वारा होता था. धर्म ही वह आधार था जो समाज को संयुक्त एवं एक करता था तथा विभिन्न वर्गों में सामंजस्य एवं एकता के लिएर् कर्तव्य-संहिता का निर्धारण करता था.

दीनदयालजी द्वारा रचित जनसंघ के राष्ट्र जीवन-दर्शन के पाँचवे, छठे एवं आठवें सूत्रों में धर्म, स्वतंत्रता, मानवाधिकार, प्रजातंत्र और राष्ट्रीय तत्वदृष्टि का वर्णन है, जिससे जनसंध की राष्ट्रीय जीवनदर्शन बनी है. व्यक्ति के विकास के लिए जनसंध ने भारतीय सामाजिक दर्शन मे वर्णित पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तथा आदर्श राष्ट्र के रूप में धर्म राज्य एक असम्प्रदायिक राज्य को स्वीकारा गया है. राष्ट्रीय प्रश्नों की ओर देखने की राष्ट्रीय तत्वदृष्टि इसमें से विकसित हुई है और उसी से जनसंध की नीति बनी है. ये दोनो विषय इतने व्यापक एवं विस्तरित है, कि इसकी व्याख्या में कई पुस्तके लिखी जा सकती है. मै संक्षेप में व्यवहार में समझने लायक विवेचना इन चन्द पंक्तियों मे कर रहा हूँ.

इनके अर्थ की गहराई को समझने के लिए मैं अपने परम पूज्य गुरु निवृत शंकराचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरिजी के आशीर्वाद रुपी विचार आपके समक्ष रख रहा हूँ-

भारतीय संस्कृति के प्रासाद को ऋषियों ने धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के चार सुदृढ़ स्तम्भों के उपर निर्मित किया है. प्राचीन महर्षियों के अनुसार- धर्मे नैव प्रजा सर्वा रक्षन्तस्य परस्परम्। धर्म द्वारा लोग अपनी रक्षा करते थे. धर्मतंत्र का प्रभाव इतना बड़ा था कि राजतंत्र की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी. शाश्वत जीवन-तत्व के बारे में हिन्दु धर्म का यह मानना है कि जीवन को परिपूर्ण करने के लिए आवश्यक साधनों में युग के अनुसार परिवर्तन करते समय संकोच नहीं करना चाहिए. धुएँ से अग्री की तरह सभी कर्म किसी न किसी दोष से युक्त होतें हैं, परन्तु मनुष्य संसार रुपी पानी में रहकर अपने जीवन-कमल को विकसित करता रहे. आशा , कामना, आसक्ति का त्याग कर दे, तो उसे कोई दोष नहीं लगता है. धर्म से अर्थ, अर्थ से काम और काम से योग एवं सुख उपलब्ध होतें हैं. धर्म से ही ऐश्वर्य ,एकाग्रता और उत्तम स्वर्गीय गति प्राप्त होते हैं.

दीनदयालजी के अनुसार धर्मराज्य, विधान का राज्य है. विधान का राज्य, अधिकारों की उपेक्षा कर्तव्य पर बल देने वाला राज्य है।र् कत्ताव्यप्रधान राज्य में भी शासन , न्यायसंस्था, लोकप्रतिनिधि, सब नियमानुसार ही चलते हैं। व्यक्तियों और संस्थाओं पर केवल धर्म का बंधन होता है। औक्सफोर्ड डिक्सनेरी के शब्दानुसार -विधान का राज्य; धर्म संहिता की वह किताब है जिसका निष्ठा से अनुपालन होता है; यह न्यायालय का आदेश है।समान्य परिभाषा में एक ऐसा तंत्र जहाँ कानून जनता में सर्वमान्य हो; जिसका अभिप्राय( अर्थ ) स्पष्ट हो; तथा सभी व्यक्तियों पर समानरुप से लागू हो। ये राजनैतिक और नागरिक स्वतंत्रता को आदर्श मानते हुए उसका समर्थन करते है, जिससे कि मानवाधिकार की रक्षा में विश्व में अहम् भूमिका निभाई गई है। विधान के राज्य एवं उदार प्रजातंत्र में अतिगम्भीर सम्बन्ध है। विधान का राज्य व्यक्तिगत अधिकार एवं स्वतत्रंता को बल देता है, जो प्रजातांत्रिक सरकार का आधार है। सरकारें विधान के राज्य की श्रेष्ठता स्वीकार करते हुए जनता के अधिकारों के प्रति सचेत रहती हैं, वहीं एक संविधान ,जनता में कानून की स्वीकृति पर निर्भर करता है। विधि एवं विधान के राज्य में कुछ खास अन्तर हैं- जो सरकारें प्राकृतिक नियम, मर्यादा, व्यवहार विधि को आर्दश मानते हुए, किसी प्रकार के पक्षपात नहीं करती तथा न्याय के संस्थानों को प्राथमिकता देती हैं ,वे विधान द्वारा स्थापित होती हैं।

भारतीय संविधान के निर्माताओं ने गहन अध्ययन एवं मनन् के पष्चात् चार विधान के सिध्दांतों न्याय, स्वतंत्रता, समता एवं बन्धुता की संरचना की जो कि हमारे संविधान के आधारभूत स्तंभ थे, जिसे बाद में शासनाधयक्षों ने अपने स्वार्थ हेतु , वोटबैक की नीति के तहत बदल दिया। इसलिए भारतवर्ष में विधान का राज्य पूर्णत: कायम नहीं है। अस्तु आज भारतवर्ष में वर्ग विरोध सर्वव्यापी है।

दीनदयालजी ने राष्ट्रवाद का विचार भी संस्कृति तथा धर्म के परिवेश में किया है। हिन्दु विचार के अनुसार व्यक्ति और समाज अभिन्ना होते हैं। भारतीय विचार-प्रणाली समाजनिरपेक्ष व्यक्ति का अस्तित्व ही संभव नहीं मानती।

दीनदयालजी को जनसंध के आर्थिक नीति के रचनाकार बताया जाता है। आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है। उन्होने इस पर लिखा है- राष्ट्रवाद, जनतंत्र, समाजवाद,साम्यवाद सब समानता पर आधारित प्रणालियाँ हैं, परन्तु कोई भी परिपूर्ण नहीं। राष्ट्रवाद के कारण विश्वशांति के लिए संकट उत्पन्ना होता है, पूंजीवाद प्रजातंत्र को ग्रस लेता है और उसमे से शोषण होता है , समाजवाद, पूंजीवाद का नाश करता है, किन्तु उनके कारण प्रजातंत्र का विनाश होता है और व्यक्ति का स्वातंत्र्य खतरे में पड़ जाता है। इसलिए धर्मराज्य, प्रजातंत्र, सामाजिक समानता एवं आर्थिक विकेन्द्रीकरण हमारे ध्येय होने चाहिए। जो इन सबका समावेश करे, ऐसा वादहमें चाहिए। फिर आप उसे जो चाहे नाम दिजिए , हिन्दुत्ववाद या मानवतावाद। उन्होने इन सभी प्रणालीयों का अध्ययन एवं मनन् करने के बाद एकात्म मानववाद के सिध्दान्त को जन्म दिया। राष्ट्रवादी , समन्वयवादी एवं पूर्णतावादी लोगों का मानना है कि पश्चिम की भौतिकता का तालमेल भारत की अध्यात्मिकता के साथ बैठाना चाहिए। भौतिक एवं अध्यात्मिक दो पृथक् भागों में जीवन का विचार नहीं किया जा सकता। यही एकात्म मानववाद के बीज है, जिसमे गीता पर आधारित कर्मयोग का प्रतिपादन किया गया है।

विचार-स्वातन्त्रय के इस युग में मानव-कल्याण के लिए अनेक विचारधाराओं को पनपने का अवसर मिला है। इसमे साम्यवाद, पूँजीवाद, अन्त्योदय, सर्वोदय आदि मुख्य है। किन्तु चराचर जगत् को संतुलित, स्वस्थ व सुंदर बनाकर मनुष्य मात्र पूर्णता की ओर ले जा सकने वाला एकमात्र प्रक्रम सनातन धर्म द्वारा प्रतिपादित जीवन-विज्ञान, जीवन-कला व जीवन-दर्शन है।

संसार में सब कुछ निर्माण करना बहुत सरल है, परन्तु व्यक्ति का निर्माण करना अत्यन्त कठिन काम है. इसलिए चाणक्य ने कहा है- इषु: हन्यात् नवा हन्यात् इषुमुक्ते धन्ष्मत: किन्तु बुध्दिता हन्यात् राष्ट्रं राजकम्  बुध्दिमतो पृष्टा हन्यात् राष्ट्रं सराजकम्॥ बुध्दिमान की बुध्दि ठीक से चलने लगे तो अपनी बुध्दि की उत्कृष्टता से राष्ट्र और राजा दोनो का परिवर्तन कर सकता है. इसलिए यह सिद्ध बात है कि प्रबुध्दजन चिन्तन करें तो बहुत कुछ कर सकते हैं. समाज में हो रहे नैतिक गिरावट के लिए बुध्दिजीवियों की अकर्मन्यता अधिक जिम्मेवार है, बनिस्पत कि आम आवाम द्वारा किए जा रहे निकृष्ट कर्म।

 

-वी.के. सिंह

प्रवक्ता में 11.02. 2010 में छापा गया


Retail Trade and its importance to the Indian Economy in Hindi



खुदरा व्यापार और भारतीय  अर्थव्यवस्था मे उसका महत्व

भारत में खुदरा व्यापार इसके अर्थव्यवस्था और अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 15% है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के स्तंभों में से एक है. भारतवर्ष मे कृषि के बाद खुदरा व्यापार में लोगों को  सबसे बड़ी संख्या मे रोजगार मिलता है.  भारतीय खुदरा बाजार अनुमानतः  450 अरब डॉलर अमेरिका या 2,34,952.20 करोड़ रुपए का हैऔर आर्थिक मूल्याकन से दुनिया के शीर्ष पांच आर्थिक खुदरा बाजार मे से एक है. ए॓सा अनुमान है कि भारत के खुदरा संगठित उद्योग, प्रत्यक्ष या सीधे रूप से  40 मिलियन या 4 करोड़ भारतीयों को (भारतीय जनसंख्या का 3.3%) रोजगार देता है . जिसमे  खुदरा आयोजित विक्री केन्द्र 1.3 मिलियन के आसपास हैं. यदि हम असंगठित क्षेत्र और संगठित क्षेत्र और उनके आश्रितों के कर्मचारियों को भी शामिल कर लें तो , यह आंकड़ा 30 करोड़ लोगों से ऊपर हो जाएगा. भारत में हर 1000 लोगों के लिए 11 खुदरा आयोजित विक्री केन्द्र / दुकान हैं .संगठित खुदरा बाजार सालाना 35 प्रतिशत के दर से बढ़ रही है जबकि असंगठित खुदरा क्षेत्र की विकास दर 6 प्रतिशत से कम आंकी गई है.
   दुनिया भर में यह तथ्य सर्वमान्य है  की एक खुदरा दुकान खोलने के लिए भारी निवेश करना  आवश्यक नहीं है. एक खुदरा दुकान खोलने के लिए मात्र बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है. अत्याधुनिक तकनीक खुदरा व्यापार के लिए आवश्यक नहीं है. छोटे खुदरा दुकान अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं एक बड़े खुदरा स्टोरों की एक श्रृंखला के तुलना में.  यदि भारतवर्ष में खुदरा व्यापार में  प्रत्यक्ष  विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दी गई तो विदेशी कंपनियां पहले थोक में उत्पादकों से माल खरीद कर कम मार्जिन पर बेचेंगे और इस तरह से वे छोटे व्यापारियों  को कारोबार से  बाहर कर देंगी  और जब छोटे व्यापारी बाहर हो जाएंगे तो  व्यापार और माल पर उनका एकाधिकार हो  जाएगा और तब वे वस्तुओं की कीमत बढ़ा कर मनमानी कीमत आम आवाम से वसूलेंगे .इस तरीके को हम लोग प्रीडेटिव पॉलिसी के रूप में जानते हैं .
   स्वतंत्र दुकानें  बंद हो जायेंगी जिससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो जायेंगे.  हमने यह खेल सॉफ्ट ड्रिंक उद्योग मे देखा है जहाँ पेप्सी और कोक ने भारतीय शीतल पेय उद्योग के कंपनियों को बंद करा दिया.  खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के अनुमती से विदेशी लोगों का ज्यादा फायदा होगा, काम भारतीय लोग करेगे और फायदा विदेशी लोग  ले  जायेंगे .  भारत के खुदरा व्यापार मे विदेशी पूंजी निवेशकों की अवशयकता नहीं है .
खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी निवेश की अनुमती देकर मनमोहन सिंह और यू पी ए सरकार ने छोटे व्यापारियों के  रोजगार को छीनने की पूरी तैयारी कर ली है. सरकार का यह दावा है कि इससे कृषि और उपभोक्ताओं को फायदा होगा , अगर यह सच है तो, विश्व का सबसे सम्पन्न  देश अमेरिका के विश्व  सबसे बड़े खुदरा व्यापार स्टोर वाल्मार्ट जिसका अमेरिका खुदरा व्यापार में 85 फीसदी हिस्सेदारी है , के  रहते अमेरिका के किसानो को कृषि छोड़ने को क्यों मजबूर हो रहे हैं और 1985 से 2009 के दौरान अमेरिका ने 12.50 लाख करोड़ रुपए की अनुदान(सब्सिडि) अपने किसानों को क्यों  दिया॰ क्यों अमेरिका के सबसे बड़े शहर न्यूयार्क सिटी के सजग लोगों ,व्यापारिक और मजदूर संघों और जागरूक निर्वाचित प्रतिनिधियों ने मिलकर वाल्मार्ट के लगातार वहाँ स्टोर खोलने की कोशिशों को नाकामयाब किया ? न्यूयार्क सिटी मे आज भी वाल्मार्ट स्टोर नहीं है .
 खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के अनुमती से विदेशी लोगों का ज्यादा फायदा होगा, काम भारतीय लोग करेगे और फायदा विदेशी लोग  ले  जायेंगे . एक सर्वे के अनुसार वाल्मार्ट, टेस्को और करेफ़ौर का एक औसत स्टोर 11,200 लोगों को बेरोजगार करता है और उसे 285 लोगों को रोजगार देकर प्रतिस्थापित करता है .
      मनमोहन सिंह और यू पी ए सरकार ने दिनांक 1.10.2012  से भारत में खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी निवेश को अध्यादेश द्वारा लागू करके छोटे दूकानदारों और व्यापारियों को बेरोजगार करना शुरू कर दिया है .विदेशी ईस्ट- इंडिया कंपनी ने व्यापार करते करते भारतवर्ष को दो सौ साल तक राजनीतिक गुलाम बनाया.  आज फिर से इतिहास दोहराया जा रहा है और पचास से अधिक  .विदेशी कंपनीयां देश को पहले  आर्थिक  रूप से और फिर राजनौतिक  हस्तक्षेप  कर गुलाम बनाने आ रही हैं .  

Pandit Deendayal Upadhyaya and his Philosophy for the Indian Nation


Ik- nhun;ky mik/;k; vkSj jk"Vª thou&n'kZu



foy{k.k cqf)] ljy O;fDrRo ,oa Uskr`Ro ds vufxur xq.kksa ds Lokeh ] Ik- nhun;ky mik/;k; th  dh gR;k flQZ 52 o"kZ dh vk;q esa 11 Qjojh 1968 dks eqxyljk; ds ikl jsyxkM+h esaa ;k=k djrs le; gqbZ FkhA mudk ikfFkZo 'kjhj eqxyljk; LVs'ku ds okMZ esa iM+k ik;k x;kA Hkkjrh; jktuhfrd f{krht ds  bl izdk'keku lw;Z us Hkkjro"kZ  esa lH;rkewyd jktuhfrd fopkj/kkjk  dk izpkj ,oa izksRlkgu djrs gq, vius izk.k jk"Vª dks lefiZr dj fn;kA vukd"kZd O;fDrRo ds Lokeh nhun;kyth mPpdksfV ds nk'kZfud FksAfdlh izdkj HkkSfrd ek;k&eksg mudks Nw rd ugha ldkA os u ns'k ds iz/kkuea=h Fks] u jk"Vªifr fQj Hkh fnYyh esa muds ikfFkZo 'kjhj dks vius vafre iz.kke djus ikap yk[k ls Hkh vf/kd turk meM+ iM+h FkhA rsjgoha ds fnu iz;kx esa vfLFk&foltZu ds le; nks yk[k ls vf/kd yksx viuh HkkoHkhuh J)katfy vfiZr djus dks ,df=r gq, FksA

tula?k ds jk"Vª thou&n'kZu ds fuekZrk nhun;ky th dk mÌs'; Lora=rk dh iquZjapuk ds iz;klksa ds fy, fo'kq) Hkkjrh; rÙo&n`f"V iznku djuk Fkk A nhun;ky th ds fopkjksa dk v/;;u djrs le; mudh oSpkfjd izfØ;k] ftldk vk/kkj laLd`fr rFkk /keZ gS] dks le>uk vko';d gSA  ;gkWa /keZ dk vFkZ O;kid gS A Hkkjrh; laLd`fr esa lkekftd O;oLFkk dk lapkyu ljdkjh dkuwu ls ugha cfYd izpfyr fu;eksa ftls ^/keZ* ds uke ls tkuk tkrk Fkk] ds }kjk gksrk FkkA /keZ gh og vk/kkj Fkk tks lekt dks la;qä ,oa ,d djrk Fkk rFkk fofHkUu oxksZa esa lkeatL; ,oa ,drk ds fy, dÙkZO;&lafgrk dk fu/kkZj.k djrk FkkA


       nhun;kyth }kjk jfpr tula?k ds jk"Vª thou&n'kZu ds ikWapos] NBs ,oa vkBosa lw=ksa esa /keZ] Lora=rk] ekuokf/kdkj] iztkra= vkSj jk"Vªh; rRon`f"V dk o.kZu gS] ftlls tula/k dh jk"Vªh; thoun'kZu cuh gSA O;fDr ds fodkl ds fy, tula/k us Hkkjrh; lkekftd n'kZu es of.kZr iq#"kkFkZ& /keZ] vFkZ] dke vkSj eks{k rFkk vkn'kZ jk"Vª ds :Ik esa /keZ jkT; ,d vlEÁnkf;d jkT; dks Lohdkjk gSA jk"Vªh; iz'uksa dh vksj ns[kus dh  jk"Vªh; rRon`f"V blesa ls fodflr gqbZ gS vkSj mlh ls tula/k dh uhfr cuh gSA ;s nksuks fo"k; brus O;kid ,oa foLrfjr gS] fd bldh O;k[;k esa dbZ iqLrds fy[kh tk ldrh gSA eS la{ksi esa O;ogkj esa le>us yk;d foospuk bu pUn iafDr;ksa es dj jgk gwWaA
buds vFkZ dh xgjkbZ dks le>us ds fy, eSa vius ije iwT; xq# fuo`r 'kadjkpk;Z egke.Mys'oj Lokeh lR;fe=kuUn fxfjth ds vk'khokZn #ih fopkj vkids le{k j[k jgk gwWa&
      Hkkjrh; laLd`fr ds izklkn dks _f"k;ksa us /keZ] vFkZ] dke rFkk eks{k ds pkj lqn`<+ LrEHkksa ds mij  fufeZr fd;k gSA Ákphu egf"kZ;ksa ds vuqlkj& /kesZ uSo iztk lokZ j{kUrL; ijLije~A /keZ }kjk yksx viuh j{kk djrs FksA /keZra= dk ÁHkko bruk cM+k Fkk fd jktra= dh vko';drk gh ugha iM+rh Fkh A 'kk'or thou&rRo ds ckjs esa fgUnq /keZ dk ;g ekuuk gS fd thou dks ifjiw.kZ djus ds fy, vko';d lk/kuksa esa ;qx ds vuqlkj ifjorZu djrs le; ladksp ugha djuk pkfg,A /kq,Wa ls vfxz dh rjg lHkh deZ fdlh u fdlh nks"k ls ;qDr gksrsa gSa] ijUrq euq"; lalkj #ih ikuh esa jgdj vius thou&dey dks fodflr djrk jgsA vk'kk ] dkeuk] vklfDr dk R;kx dj ns] rks mls dksbZ nks"k ugha yxrk gSA /keZ ls vFkZ] vFkZ ls dke vkSj dke ls ;ksx ,oa lq[k miyC/k gksrsa gSaA /keZ ls gh ,s'o;Z ],dkxzrk vkSj mÙke LoxhZ; xfr izkIr gksrs gSaA

 nhun;kyth  ds vuqlkj /keZjkT;]  fo/kku dk jkT; gSA fo/kku dk jkT;] vf/kdkjksa dh mis{kk drZO; ij cy nsus okyk jkT; gSA dÙkZO;iz/kku jkT; esa Hkh 'kklu ] U;k;laLFkk] yksdizfrfuf/k] lc fu;ekuqlkj gh pyrs gSaA O;fDr;ksa vkSj laLFkkvksa ij dsoy /keZ dk ca/ku gksrk gSA vkSDlQksMZ fMDlusjh ds 'kCnkuqlkj &fo/kku dk jkT;( /keZ lafgrk dh og fdrkc gS ftldk fu"Bk ls vuqikyu gksrk gS( ;g U;k;ky; dk vkns'k gSAlekU; ifjHkk"kk esa ,d ,slk ra= tgkWa dkuwu turk esa loZekU; gks( ftldk vfHkizk;¼ vFkZ ½ Li"V gks( rFkk lHkh O;fDr;ksa ij leku#i ls ykxw gksA ;s jktuSfrd vkSj ukxfjd Lora=rk dks vkn'kZ ekurs gq, mldk leFkZu djrs gS] ftlls fd ekuokf/kdkj dh j{kk esa fo'o esa vge~ Hkwfedk fuHkkbZ xbZ gSA fo/kku ds jkT; ,oa mnkj iztkra= esa vfrxEHkhj lEcU/k gSA fo/kku dk jkT; O;fDrxr vf/kdkj ,oa Lor=ark dks cy nsrk gS] tks iztkrkaf=d ljdkj dk vk/kkj gSA ljdkjsa fo/kku ds jkT; dh Js"Brk Lohdkj djrs gq, turk ds vf/kdkjksa ds izfr lpsr jgrh gSa] ogha ,d lafo/kku ]turk esa dkuwu dh Lohd`fr ij fuHkZj djrk gSA fof/k ,oa fo/kku ds jkT; esa dqN [kkl vUrj gSa& tks ljdkjsa izkd`frd fu;e] e;kZnk] O;ogkj fof/k dks vknZ'k ekurs gq,] fdlh izdkj ds i{kikr ugha djrh rFkk U;k; ds laLFkkuksa dks izkFkfedrk nsrh gSa ]os fo/kku }kjk LFkkfir gksrh gSaA
Hkkjrh; lafo/kku ds fuekZrkvksa us xgu v/;;u ,oa euu~ ds i’pkr~ pkj fo/kku ds fl)karksa & U;k;] Lora=rk] lerk ,oa cU/kqrk & dh lajpuk dh tks fd gekjs lafo/kku ds vk/kkjHkwr LraHk Fks] ftls ckn esa 'kkluk/k;{kksa us vius LokFkZ gsrq ] oksVcSd dh uhfr ds rgr cny fn;k A blfy, Hkkjro"kZ esa fo/kku dk jkT; iw.kZr% dk;e ugha gSA vLrq vkt Hkkjro"kZ esa  oxZ fojks/k loZO;kIkh gSA
    nhun;kyth us jk"Vªokn dk fopkj Hkh laLd`fr rFkk /keZ ds ifjos'k esa fd;k gSA fgUnq fopkj ds vuqlkj O;fDr vkSj lekt vfHk™k gksrs gSaA Hkkjrh; fopkj&Á.kkyh lektfujis{k O;fDr dk vfLrRo gh laHko ugha ekurh A
nhun;kyth dks tula/k ds vkfFkZd uhfr ds jpukdkj crk;k tkrk gSA vkfFkZd fodkl dk eq[; mís'; lkekU; ekuo dk lq[k gSA mUgksus bl ij fy[kk gS& jk"Vªokn] tura=] lektokn]lkE;okn lc lekurk ij vk/kkfjr iz.kkfy;kWa gSa] ijUrq dksbZ Hkh ifjiw.kZ ughaAjk"Vªokn ds dkj.k fo'o'kkafr ds fy, ladV mRi™k gksrk gS] iawthokn iztkra= dks xzl ysrk gS vkSj mles ls 'kks"k.k gksrk gS ] lektokn] iawthokn dk uk'k djrk gS] fdUrq muds dkj.k iztkra= dk fouk'k gksrk gS vkSj O;fDr dk Lokra«; [krjs esa iM+ tkrk gSA blfy, /keZjkT;] iztkra=] lkekftd lekurk ,oa vkfFkZd fodsUnzhdj.k gekjs /;s; gksus pkfg,A tks bu lcdk lekos'k djs] ,slk ^okn* gesa pkfg,A fQj vki mls tks pkgs uke fnft, ] fgUnqRookn ;k ekuorkoknA mUgksus bu lHkh iz.kkyh;ksa dk v/;;u ,oa euu~ djus ds ckn ,dkRe ekuookn ds fl)kUr dks tUe fn;kA jk"Vªoknh ] leUo;oknh ,oa iw.kZrkoknh yksxksa dk ekuuk gS fd if'pe dh HkkSfrdrk dk rkyesy Hkkjr dh v/;kfRedrk ds lkFk cSBkuk pkfg, A HkkSfrd ,oa v/;kfRed nks i`Fkd~ Hkkxksa esa thou dk fopkj ugha fd;k tk ldrkA ;gh ,dkRe ekuookn ds cht gS] ftles xhrk ij vk/kkfjr deZ;ksx dk izfriknu fd;k x;k gSA
fopkj&LokrU=; ds bl ;qx esa ekuo&dY;k.k ds fy, vusd fopkj/kkjkvksa dks iuius dk volj feyk gSA bles lkE;okn] iwWathokn] vUR;ksn;] loksZn; vkfn eq[; gSA fdUrq pjkpj txr~ dks larqfyr] LoLFk o lqanj cukdj euq"; ek= iw.kZrk dh vksj ys tk ldus okyk ,dek= ÁØe lukru /keZ }kjk Áfrikfnr thou&foKku] thou&dyk o thou&n'kZu gSA
     lalkj esa lc dqN fuekZ.k djuk cgqr ljy gS] ijUrq O;fDr dk fuekZ.k djuk vR;Ur dfBu dke gSA blfy, pk.kD; us dgk gS& ^b"kq% gU;kr~ uok gU;kr~ b"kqeqDrs /kU"er% fdUrq cqf)rk gU;kr~ jk"Vªa jktde~A cqf)erks i`"Vk gU;kr~ jk"Vªa ljktde~AA* cqf)eku dh cqf) Bhd ls pyus yxs rks viuh cqf) dh mRd`"Vrk ls jk"Vª vkSj jktk nksuks dk ifjorZu dj ldrk gSA blfy, ;g fl) ckr gS fd izcq)tu fpUru djsa rks cgqr dqN dj ldrs gSaA lekt esa gks jgs uSfrd fxjkoV ds fy, cqf)thfo;ksa dh vdeZU;rk vf/kd ftEesokj gS] cfuLir fd vke vkoke }kjk fd, tk jgs fud`"V deZA