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Cultural Nationalism and its Role in Development of a Country in Hindi

राष्ट्र के विकास में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भूमिका

राष्ट्र  समान्यतः राज्य या देश से समझा जाता है . राष्ट्र का एक शाश्वत अथवा जीवंत अर्थ है “ एक राज्य में बसने वाले समस्त जन समूह ”. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद इसी शाश्वत अर्थ को दर्शाता है . राष्ट्रवाद राष्ट्र हितों के प्रति समर्पित विचार है , जो एकता, महत्ता और कल्याण का समर्थक है , समस्त भारतीय समुदाय को समता एवं समानता के सिद्धान्तों पर एकीकरण करने का एक सतत् प्रयास है . राष्ट्रवाद समस्त नागरिकों के प्रति समर्पित विचार है , जिसमें सवर्ण, दलित , पिछड़े, हिन्दू मुस्लिम , सिख, ईसाई  सब सम्मालित हैं .नागरिकों को एकता के सूत्र में बॉधने एवं एक दूसरे के प्रति सच्ची श्रद्धा – समर्पण ही राष्ट्रवाद है ।  
राष्ट्रवाद का सीधा संबंध विकास से है, जो किसी राष्ट्र के अंतिम व्यक्ति के विकास से परिलक्षित होता है . विश्व के आठ बड़े विकसित देशों के समूह जी8 का विचार करें, तो इसमें दो ऐसी आर्थिक शक्तियाँ हैं , जिनको भारतवर्ष के साथ ही लगभग स्वतन्त्रता मिली ( तानाशाहों से ). जापान और जर्मनी ये दो देश द्वितीय विश्वयुद्ध मे बुरी तरह तबाह हो गए थे . काम करने वाले स्वस्थ लोग काम ही बचे थे , आर्थिक एवं राजनैतिक दबाव से ग्रसित थे तथा कर्ज के बोझ से दबे हुए थे .इन राष्ट्रो मे एक समानता थी , इन प्रदेशों की जनता मे राष्ट्रवाद की भावना कूट कूट  कर भरी हुई थी . मैं जापान का उदाहरण  आपके समक्ष रखना चाहूँगा. सांस्कृतिक दृष्टिकोण से जापान और भारत में काफी समानतायें हैं तथा जापान ने पौराणिक काल में हिन्दू जीवनदर्शन से बहुत सारी बातें ग्रहण की  हैं . आजादी के वक्त, जापान की प्रति किलोमीटर जनसंख्या भारतवर्ष से लगभग तिगुनी थी . प्राकृतिक, आर्थिक, मानव एवं भौतिक सम्पदा और संसाधनों मे वे भारतवर्ष की तुलना में काफी कम, ताकतवर थे. दोनों देश विश्व से समक्ष आर्थिक शक्ति बन कर उभरें हैं . जापानी राष्ट्रवाद का सजग उढाहरण वहाँ के श्रमिकों एवं मजदूर वर्ग के असंतोष व्यक्त करने के तरीके से उजागर होता है . जापानी लोग कभी हड़ताल कर अपने कर्मस्थल मे ताला नहीं लागते , परंतु वे काला फीता बांधकर विरोध प्रकट करते हैं . मांग पूरी होने पर वे अपने उच्च अधिकारियों से बातचीत करना बंद कर देने हैं, इससे बात बने तो वे कारखानों मे दुगुना तिगुना उत्पादन करने लगते हैं. यहाँ यह बताना आवश्यक है की उत्पादन दुगुना बढ्ने से माल का उत्पादन निम्न स्तर का होता है, कारखानो की चलपुंजी एवं कलपुर्ज़ों का तेजी से ह्रास होता है और बिकवाली पर प्रतिकूल असर पड़ता है और मिलमालिकों की मुश्किल कई गुना बढ़ जाती है. एक मजबूत और उन्नत राष्ट्र के निर्माण के लिए यह परम आवश्यक है कि इसके नागरिकों में एकता और सद्- भावना हो जिससे उन्हें अपनी मातृभूमि से आत्मिक प्रेम और लगाव की भावना उत्पन्न हो , जो जापानियों के बीच मौजूद है .
राष्ट्रवाद का सिद्धांत किसी भी वर्ग विशेष की तुष्टीकरण के विरूद्ध है , तथा पूरे राष्ट्र में एक कानून और समान नागरिक संहिता की वकालत करती है.
संस्कृति से किसी व्यक्ति , वर्ग , राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन ,रुचि , आचार – विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है  .  दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है . भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है की हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है .

  किसी भी कौम की संस्कृति का हम विचार करें तो यह विशेष रूप से उस समुदाय के जन्म- मरण , शादी-विवाह और त्यौहारों के उत्सव एवं रीति-रिवाजों  मे झलकता है . अगर हम भारतीय मूल ए हिन्दू मुसलमान और ईसाईयों की संस्कृति की बात करें तो धार्मिक रीति-रिवाजों को छोड़ इन सारे खुशी के मौकों पर साथ  को छोड़ इन सारे खुशी के मौकों पर साथ- साथ रहते-रहते प्रायः  सबने एक दूसरे के बहुत सारे  रीति रिवाज , सभ्यता , कार्य – संस्कृति  और तौर तरीकों  को ग्रहण किया है तथा उसे अपने व्यवहार और जीवनशैली मे सम्मलित किया . यह इन सभी धर्मो मे समान है जो की अन्य देशों की संस्कृति से बिल्कुल भिन्न है . वास्तव मे यही धर्मनिरपेक्ष हिन्दू हिन्दू समाज की सभ्यता की तस्वीर है और इसे देश विदेश में  हिन्दुत्व या हिंदुस्तानी सभ्यता या संस्कृति के नाम से जाना जाता है . यही कारण है की भारतीय मुला के मुसलमान और ईसाई सम्प्रदाय अपने को अन्य देशो के भाइयों से अपने को बिल्कुल अलग और भिन्न पाते हैं .

  

आज गैर –भारतीयता को सेकुलरवाद और राजनीतिक सफलता का पैमाना माना जाता है . यहाँ राष्ट्रीयता की विचारधारा को हलके ढंग से लेते हुए हिंदुत्वमूलक सामाजिक और सांस्कृतिक विचारधारा जो वास्तव में भारतीय सनातनी परिकल्पना का आधार है , को ही संदेह की दृष्टी से देखा जाता है .  आज हम सभी नागरिकों एवं जनप्रतिनिधियों का यह नैतिक ,सामाजिक एवं मौलिक कर्त्तव्य है कि हम आपसी भेदभाव को भुलाकर भारतवर्ष में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति जागृत करने का सामूहिक प्रयास करें . इस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जागृति से राष्ट्र में शांति एवं व्यवस्था कायम होगी , जिससे राष्ट्र को एक आर्थिक शक्ति के रूप में विकसित किया जा सकेगा . 


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