खुदरा व्यापार और भारतीय
अर्थव्यवस्था मे उसका महत्व
भारत में खुदरा व्यापार
इसके अर्थव्यवस्था और अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 15% है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के स्तंभों में से एक है. भारतवर्ष
मे कृषि के बाद खुदरा व्यापार में लोगों को
सबसे बड़ी संख्या मे रोजगार मिलता है.
भारतीय खुदरा बाजार अनुमानतः 450 अरब डॉलर अमेरिका या 2,34,952.20 करोड़ रुपए का है,
और आर्थिक मूल्याकन
से दुनिया के शीर्ष पांच आर्थिक खुदरा बाजार मे से एक है. ए॓सा अनुमान है कि भारत के
खुदरा संगठित उद्योग, प्रत्यक्ष या सीधे रूप से
40 मिलियन या 4 करोड़ भारतीयों को
(भारतीय जनसंख्या का 3.3%)
रोजगार देता है . जिसमे
खुदरा आयोजित विक्री केन्द्र 1.3 मिलियन के आसपास हैं.
यदि हम असंगठित क्षेत्र और संगठित क्षेत्र और उनके आश्रितों के कर्मचारियों को भी शामिल
कर लें तो , यह आंकड़ा 30 करोड़ लोगों से ऊपर
हो जाएगा. भारत में हर 1000 लोगों के लिए 11 खुदरा आयोजित विक्री
केन्द्र / दुकान हैं .संगठित खुदरा बाजार सालाना 35 प्रतिशत के दर से
बढ़ रही है जबकि असंगठित खुदरा क्षेत्र की विकास दर 6 प्रतिशत से कम आंकी गई है.
दुनिया भर में यह तथ्य सर्वमान्य है की एक खुदरा दुकान खोलने के लिए भारी निवेश करना आवश्यक नहीं है. एक खुदरा दुकान खोलने के लिए मात्र
बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है. अत्याधुनिक तकनीक खुदरा व्यापार के लिए आवश्यक नहीं
है. छोटे खुदरा दुकान अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं एक बड़े खुदरा स्टोरों
की एक श्रृंखला के तुलना में. यदि भारतवर्ष
में खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दी गई तो विदेशी कंपनियां
पहले थोक में उत्पादकों से माल खरीद कर कम मार्जिन पर बेचेंगे और इस तरह से वे छोटे
व्यापारियों को कारोबार से बाहर कर देंगी
और जब छोटे व्यापारी बाहर हो जाएंगे तो
व्यापार और माल पर उनका एकाधिकार हो
जाएगा और तब वे वस्तुओं की कीमत बढ़ा कर मनमानी कीमत आम आवाम से वसूलेंगे .इस
तरीके को हम लोग प्रीडेटिव पॉलिसी के रूप में जानते हैं .
स्वतंत्र दुकानें बंद हो जायेंगी जिससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार
हो जायेंगे. हमने यह खेल सॉफ्ट ड्रिंक उद्योग
मे देखा है जहाँ पेप्सी और कोक ने भारतीय शीतल पेय उद्योग के कंपनियों को बंद करा दिया. खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के अनुमती से विदेशी
लोगों का ज्यादा फायदा होगा, काम भारतीय लोग करेगे
और फायदा विदेशी लोग ले जायेंगे .
भारत के खुदरा व्यापार मे विदेशी पूंजी निवेशकों की अवशयकता नहीं है .
खुदरा व्यापार में
विदेशी पूंजी निवेश की अनुमती देकर मनमोहन सिंह और यू पी ए सरकार ने छोटे व्यापारियों
के रोजगार को छीनने की पूरी तैयारी कर ली है.
सरकार का यह दावा है कि इससे कृषि और उपभोक्ताओं को फायदा होगा , अगर यह सच है तो, विश्व का सबसे सम्पन्न देश अमेरिका के विश्व सबसे बड़े खुदरा व्यापार स्टोर वाल्मार्ट जिसका
अमेरिका खुदरा व्यापार में 85 फीसदी हिस्सेदारी
है , के रहते अमेरिका के
किसानो को कृषि छोड़ने को क्यों मजबूर हो रहे हैं और 1985 से 2009 के दौरान अमेरिका
ने 12.50 लाख करोड़ रुपए की अनुदान(सब्सिडि) अपने किसानों को क्यों दिया॰ क्यों अमेरिका के सबसे बड़े शहर न्यूयार्क
सिटी के सजग लोगों ,व्यापारिक और मजदूर संघों और जागरूक निर्वाचित प्रतिनिधियों
ने मिलकर वाल्मार्ट के लगातार वहाँ स्टोर खोलने की कोशिशों को नाकामयाब किया ? न्यूयार्क सिटी मे आज भी वाल्मार्ट स्टोर नहीं है .
खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के अनुमती से विदेशी
लोगों का ज्यादा फायदा होगा, काम भारतीय लोग करेगे
और फायदा विदेशी लोग ले जायेंगे . एक सर्वे के अनुसार वाल्मार्ट, टेस्को और करेफ़ौर का एक औसत स्टोर 11,200 लोगों को बेरोजगार करता है और उसे 285 लोगों को रोजगार देकर प्रतिस्थापित करता है .
मनमोहन सिंह और यू पी ए सरकार ने दिनांक 1.10.2012 से भारत में खुदरा
व्यापार में विदेशी पूंजी निवेश को अध्यादेश द्वारा लागू करके छोटे दूकानदारों और व्यापारियों
को बेरोजगार करना शुरू कर दिया है .विदेशी ईस्ट- इंडिया कंपनी ने व्यापार करते करते
भारतवर्ष को दो सौ साल तक राजनीतिक गुलाम बनाया.
आज फिर से इतिहास दोहराया जा रहा है और पचास से अधिक .विदेशी कंपनीयां देश को पहले आर्थिक
रूप से और फिर राजनौतिक हस्तक्षेप कर गुलाम बनाने आ रही हैं .