आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः।
पितृभू पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः ॥
इस परिभाषा के अनुसार हिन्दू ,मुस्लिम , सिख, ईसाई, सवर्ण, दलित , पिछड़े, सब जो इस मातृ-भूमि को , पितृभूमि और पुण्यभूमि स्वीकार करते हैं सब हिन्दू हैं .
शब्द हिंदू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार , नृवंशतया अर्थात एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग हैं . यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक और सांस्कृतिक, रूप में वर्णित किया जाता था .जिसे बाद के कालखंड में विदेशी आक्रमणकर्ताओं नें अपनी मंशा पूरी करने हेतु धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया .
राष्ट्र समान्यतः राज्य या देशसे समझा जाता है . राष्ट्र का एक
शाश्वत अथवा जीवंत अर्थ है “ एक राज्य में बसने वाले समस्त जन समूह जो एक समान
संस्कृति से बंधे हों ”. राष्ट्रवाद की तात्कालिक युग में
यही शाश्वत अर्थ है . इसका सजग उदाहरण इज़राइल है जो यहूदियों ( बंजारों ) का एक
ऐसा समूह था जिसके पास पहले कोई जमीन भी नहीं था . अगर जन राष्ट्र का शरीर है तो
संस्कृति इसकी आत्मा है जो लोगों को जोड़े रखता है . संस्कृति से किसी व्यक्ति ,
वर्ग , राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन ,रुचि , आचार – विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है . दो शब्दों में
कहें तो यह जीवन जीने की शैली है . भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व
संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है की हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म एक ही शब्द हैं
तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है .1995 के अपने
एक आदेश से माननीय उच्चतम न्यायालय ने हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म को भारत वासियों की
जीवन जीने की शैली के रूप मे परिभाषित किया है . हिन्दुत्व ने सदियों से मुसलमानों,
ईसाईयों और हिन्दुओं में एकता कायम की है और रहीम, कबीर, रामदास और महात्मा गाँधी इत्यादि कई संतों और
मौलवियों ने इसी धारा पर काम कर राष्ट्र को एकता और सद् –भावना
के सूत्र मे बांधा है .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें