अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, देशद्रोह और राष्ट्रवाद
राष्ट्र समान्यतः राज्य या देश से समझा जाता है,जो सरहद ,सीमाओं से बंधा भूमि का
खण्ड हो. राष्ट्र का एक शाश्वत अथवा जीवंत अर्थ है
“ एक राज्य में बसने वाले समस्त जन समूह जो एक
समान संस्कृति से बंधे हों ”. राष्ट्रवाद की तात्कालिक
युग में यही शाश्वत अर्थ है इसका सजग उदाहरण इज़राइल है जो यहूदियोंबंजारों का एक ऐसा समूह था जिसकेपास पहले कोई जमीन भी नहीं था.
अगर जन राष्ट्र का भौगोलिक तन (शरीर) है, तो संस्कृति इसकी आत्मा है जो लोगों को
जोड़े रखता है इनमें एकता और सामंजस्य
बनाये रखता है यही वह धुर है जिस पर राष्ट्र का सर्वागीण विकास आधारित है . एक संगठित समाज / राष्ट्र ही सामर्थवान होता
है जहाँ समाज की शक्ति सार्थक दिशा में राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में एक जुट होती है .इसके बिना राष्ट्र का विकास अधुरा रह जाता है . राष्ट्रवाद राष्ट्र हितों के प्रति समर्पित विचार है , जो एकता, महत्ता और कल्याण का समर्थक
है , समस्त भारतीय समुदाय को समता एवं समानता के
सिद्धान्तों पर एकीकरण करने का एक सतत् प्रयास है . राष्ट्रवाद समस्त नागरिकों के प्रति समर्पित विचार है ,
जिसमें सवर्ण, दलित , पिछड़े, हिन्दू मुस्लिम , सिख, ईसाई सब सम्मालित हैं .नागरिकों को एकता के सूत्र में बॉधने एवं एक दूसरे के प्रति सच्ची श्रद्धा – समर्पण ही राष्ट्रवाद है . राष्ट्रवाद का सीधा संबंध विकास से है, जो किसी राष्ट्र के अंतिम व्यक्ति के विकास से परिलक्षित
होता है . विश्व के आठ बड़े विकसित देशों के समूह जी– 8 का विचार करें, तो इसमें दो ऐसी आर्थिक
शक्तियाँ हैं , जिनको भारतवर्ष के साथ ही
लगभग स्वतन्त्रता मिली तानाशाहों से जापान और जर्मनी ये दो देश द्वितीय विश्वयुद्ध मे बुरी तरह
तबाह हो गए थे. काम करने वाले स्वस्थ लोग काम ही बचे थे , आर्थिक एवं राजनैतिक दबाव से ग्रसित थे तथा कर्ज के बोझ से दबे हुए थे . इन राष्ट्रो मे एक समानता थी , इन
प्रदेशों की जनता मे राष्ट्रवाद की भावना कूट –कूट कर भरी हुई थी . आज ये देश विकसित हैं .सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे
यह स्पष्ट वर्णन है की हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के
संस्कृति और सभ्यता का सूचक है . 1995 के अपने एक आदेश से
माननीय उच्चतम न्यायालय ने हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म को भारत वासियों की जीवन जीने
की शैली के रूप मे परिभाषित किया है . हिन्दुत्व ने सदियों से मुसलमानों, ईसाईयों और हिन्दुओं में एकता कायम की है और रहीम, कबीर, रामदास और महात्मा गाँधी
इत्यादि कई संतों और मौलवियों ने इसी धारा पर काम कर राष्ट्र को एकता और सद् –भावना के सूत्र मे बांधा है .अगर हम भारतीय मूल के हिन्दू ,मुसलमान और ईसाईयों की संस्कृति
की बात करें तो धार्मिक रीति-रिवाजों को छोड़ इन सारे खुशी के मौकों पर साथ को छोड़ कर साथ- साथ
रहते-रहते प्रायः सबने एक दूसरे के बहुत
सारे रीति रिवाज , सभ्यता , कार्य – संस्कृति
और तौर तरीकों को ग्रहण किया है
तथा उसे अपने व्यवहार और जीवनशैली मे सम्मलित किया . यह इन सभी धर्मो मे समान है
जो की अन्य देशों की संस्कृति से बिल्कुल भिन्न है . वास्तव मे यही धर्मनिरपेक्ष
हिन्दू समाज की सभ्यता की तस्वीर है और इसे देश विदेश में हिन्दुत्व या हिंदुस्तानी सभ्यता या संस्कृति
के नाम से जाना जाता है . यही कारण है की भारतीय मुला के मुसलमान और ईसाई
सम्प्रदाय अपने को अन्य देशो के भाइयों से अपने को बिल्कुल अलग और भिन्न पाते हैं
.
आज देश में कुछ तथाकथित प्रगतिशील
बंधुओ का, जिनको राष्ट्रीय हित से ज्यादा अपने बुद्धिजीवी कहलाने का अहंकार है, कुछ ऐसे विभाजक सांप्रदायिक , अराष्ट्रीय सोचवाली संस्थाओं पर आधिपत्य है. जो देश के सभी बौद्धिक संस्थाओं पर अपनी सोच
थोपना , वे अपना अधिकार समझते हैं .
कभी पुरस्कार लौटा कर तो कभी जवाहरलाल नेहरू एवं हैदराबाद केन्द्रीय विश्व
विद्यालय के नाम देश को गुमराह करते हुए भारत को नीचा एवं संसार मे बदनाम करने का
प्रयास कर रहें हैं .
भारतीय संविधान की उद्देशिका (प्रस्तावना) जो इसका आधारभूत स्तम्भ है, संविधान
को नियंत्रित करता है, और यह संसद द्वारा नहीं बनाया गया है
. संविधान की प्रस्तावना को अत्याधिक ध्यान देकर और विवेचना के साथ तैयार किया गया था , जिससे की यह संविधान निर्माताओं के उच्च विचारों और महान उद्देश्य को प्रतिबिम्बित
करे . इसके प्रस्तावना के चार आधारभूत स्तम्भ हैं :-सामाजिक , आर्थिक
और राजनीतिक न्याय, स्वतन्त्रता- विचार , अभिव्यक्ति , विश्वास , धर्म और आराधना की , समता – प्रतिष्ठा और अवसर का , बंधुता – व्यक्ति की
गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली . इसके प्रति सभी नागरिक , संकल्पित होकर भारत को एक सम्पूर्ण प्रभूत्ता –सम्पन्न
, समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य बनाने के लिए इस संविधान को अंगीकृत कर , अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं.
भारतीय संविधान के अध्याय 3 के अनुच्छेद 19 (1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
प्रदान करता है , परंतु यह निर्वाध नहीं है . देश की सुरक्षा ,मित्र राष्ट्रों के
संबंध एवं भारत की संप्रभुता एवं अखंडता इत्यादि विषयों के साथ- साथ लोक
भावनाओं का भी ध्यान रखने का भी यह निर्देश देता है .
जे.एन.यू में 9 फरवरी 2016 की घटी
घटना जिसमे सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर संसद पर हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु
को महिमामंडित कर भारतीय न्यायिक प्रणाली और व्यवस्था को कठघरे मे खड़ा
करने का असफल प्रयास किया गया था . 8 फरवरी को
जेएनयू के छात्रों के एक छोटे समूह ने रात्री भोजन के पश्चात् परिसर में
पोस्टर चिपकाए तथा 9 फरवरी को आतंकी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट को याद करते हुए
“ शहादत दिवस “ मनाया . 9 फरवरी को सांस्कृतिक कार्यक्रम के
नाम पर देशविरोधी , भारत को बर्बाद और देश
को टुकड़े करने के राष्ट्र विरोधी नारे लगाए गए.
इसी प्रकार हैदराबाद केन्द्रीय
विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला का दुःखद आत्महत्या को कुछ राजनीतिक
दलों और उनके कुछ पक्षधर मीडिया के लोगों ने सस्ती लोकप्रियता और अपनी टी.आर.पी. की भूख मिटाने के
लिए राष्ट्रवादी और हिन्दू संस्थाओं को बदनाम करने मे विशेष रुचि ली. जबकि सच्चाई यह है की मुंबई कांड जिसमे सैकड़ों निर्दोष नागरिकों की हत्या हुई थी, के जवाबदेह
याक़ूब मेनन को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर हुई, और फांसी वाले दिन
प्रतिबंधित नक्सली संगठन आई.एस.ए की ए.सी.यू की शाखा ने याक़ूब के सम्मान मे ‘नमाज़े ए जनाजे ’ का आयोजन किया था . याक़ूब के फांसी के खिलाफ ओ.यू. और एच.सी.यू. में कुछ
छात्रों ने उग्र प्रदर्शन करते हुए देश विरोधी नारे लगाए --. "याक़ूब तुम्हारे खून से क्रांति आएगी
, कितने याक़ूब मारोगे हर घर मे याक़ूब निकलेगा". राष्ट्रवादी छात्रों ने इसका
विरोध किया तो उन्हे पीटा गया. राष्ट्र विरोधी कारणों से विश्वविद्यालय नें कुछ छात्रों को उसके
छात्रावास से निलंबित क़तर दिया, जिसमे रोहित वेमुला भी शामिल था. उसे हिंसक गतिविधियो में
लिप्त पाया गया था. आत्महत्या के पूर्व लिखे पत्र के अंश जिसे साजिश के तहत पत्र मे काटा गया था , इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि छात्रावास से निलंबन से
ज्यादा वह नक्सली संगठन ए.एस.ए और एस.एफ.आई. की कार्यप्रणाली से व्यथित
था.
जरा सोचिए यह सब राष्ट्रद्रोह नहीं तो और क्या है ? क्या अभिव्यक्ति के
नाम पर मुठ्ठी भर तथा कथित लोगों को देश , समाज और राष्ट्र को तोड़ने की छूट दी जा सकती है . आज गैर –भारतीयता को सेकुलरवाद और राजनीतिक सफलता
का पैमाना माना जाता है . यहाँ राष्ट्रीयता की विचारधारा को हलके ढंग से लेते हुए
हिंदुत्वमूलक सामाजिक और सांस्कृतिक विचारधारा जो वास्तव में भारतीय सनातनी परिकल्पना
का आधार है , को ही संदेह
की दृष्टी से देखा जाता है . आज हम सभी
नागरिकों एवं जनप्रतिनिधियों का यह नैतिक ,सामाजिक एवं
मौलिक कर्त्तव्य है कि हम आपसी भेदभाव को भुलाकर भारतवर्ष में राष्ट्रप्रेम और
राष्ट्रभक्ति जागृत करने का सामूहिक प्रयास करें .
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