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मानव सभ्यता , संस्कृति, राष्ट्र और राष्ट्रवाद

 

उत्खनन, अन्वेषण एवं खोज से इस सर्वमान्य सच्चाई का पता चला है कि, सभ्य मानव समाज या व्यवस्थित राजनैतिक एवं सामाजिक सभ्यता सर्वप्रथम एक सीमीत भौगोलिक परिधि में बसी हुई थी. इसके पश्चिम में मिस्र, पूर्व में सिन्धु घाटी, उत्तर में एन्टोलिया (ऐशिया माईनर )एवं दक्षिण में  सूमेरिया (इराक, ईरान) स्थित था. सभ्य समाज उस सीमित परिधि से निकलकर भूमध्य सागर एवं पश्चिमी द्वीपों में पहुँचा. पृथ्वी पर मानव सभ्यता धर्म पर आधारित थी और पहले नगर बहुत छोटे-छोटे रूप में मन्दिरों के आस-पास बसे हुए थे. बहुत जल्दी उनमें से कुछ मन्दिरों ने उन्नति कर ली एवं उन मन्दिरों के मुख्य पुजारी नगर प्रधान कहे जाने लगे.सबसे पौराणिक ज्ञात प्रारम्भिक प्रजापति अपने मातृ नाम जैसे धोषा, अमाला, मार्गी, मैगेभी, कद्रु, विनाता अदिति,  के पुत्र  के नाम से जाने जाते थे. ऋग्वेद और महाभारत के प्रथम स्कन्ध के अनुसार यह स्पष्ट होता है. ये प्रथम मातायें ही मानव उत्पत्ति के क्रम में पांचवीं मानव सृष्टि की मूल स्रोत मानी जाती हैं.

 कुछ समय के उपरांत इन सभ्यताओं ने धर्माधारित अपनी अपनी संस्कृति विकसित कर ली. सभ्यता के विकास क्रम में कुछ मन्दिरों के मुख्य पुजारी राज्य के प्रथम राजा कहलाने लगे. विश्व के पौराणिक  धर्म अधिकतर सर्वेश्वरवादी (बहुदेववादी) थे जिसमें सबसे प्राचीन ज्ञात धर्म हमारा सनातन धर्म(आज हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने वाला) है, जिसका उद्भव मानव उत्पत्ति के साथ हुआ .ग्रीक तथा रोमन धर्म और मिश्र(मिसोपोटोमिया) के धर्म भी विश्व के प्रमुख पौराणिक धर्म हैं. पौराणिक काल में इन पर आधारित सभ्यता और संस्कृति अब लगभग समाप्त हो गई या यों कहें कि वे एकेश्वरवादी( सेमेटिक ) धर्म और उस पर आधारित सभ्यता और संस्कृति में रूपांतरित हो गई. सबसे प्राचीन(4,748 ई.पूर्व) ज्ञात सेमेटिक धर्म यजीडी(जूदाइज़्म) धर्म है जिसका प्रमुख विकास स्थल इजराइल और जुडन था. मान्यता के अनुसार यजीडी धर्म को हिन्दू धर्म को सनातन धर्म की एक शाखा माना जाता है . लगभग 2000 ईसा पूर्व यहूदी धर्म का उद्भव जेरूसुलम में हुआ . ईसाई(प्रथम शताब्दी) और इस्लाम (7वी शताब्दी)  को काफी बात को भी इस धर्म ने प्रभावित किया. इन्हें अब्रामिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है . 

संस्कृति से किसी मानव सभ्यता की वे बातें जो उनके मन ,रुचि , आचार विचार, कला-कौशल, साहित्य ,दर्शन और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है . दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है .

  ईसाई और इस्लाम धर्म के विकास और जबरन धर्म परिवर्तन के प्रयत्न ने यहूदियों को बंजारा बना दिया और अपनी मातृभूमि जेरुसुलम से दूर ले गई और वे पूरे विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में जा कर बस गए. इतिहास गवाह है कि ईसाई और इस्लाम धर्म की शुरुआत से पहले यह शहर प्राचीन  यहूदियों की राजधानी हुआ करती थी जिसे जबरन धर्म परिवर्तन के कारण यहूदियों को छोड़ना पड़ा . यहीं यहूदियों का परमपवित्र सोलोमन मन्दिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था. ये शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है. यहूदियों ने अपनी मातृभूमि को छोड़ा परन्तु अपनी संस्कृति को जीवंत रखा और नहीं भूले, इसलिए उनकी राष्ट्रीयता जीवित और अक्षुण्ण रही .

इसी प्रकार आर्यावर्त ( भारतवर्ष) मे भी विभिन्न आक्रांताओं शक, यमन,कुषाण, यूनानी, फ्रेंच,डच, मुगल और अंग्रेज़ ने भी आकर सनातन सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की , परंतु सनातन  संस्कृति इतनी उन्नत, आधुनिक और विकसित  थी  की इसने उनको भी प्रभावित किया और वे इसे नष्ट नहीं कर पाये, बल्कि उन्होने अपनी सभ्यता को भी इसमें समावेशित कर लिया . इसलिए पराधीन होने के बावजूद भारत की संस्कृति जागृत है . हमारी संस्कृति जीवित है  इसी कारण हमारी राष्ट्रीय भावना जीवित  है . हमारी संस्कृति में जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’’ के अंर्तगत जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढकर बताया गया है

राष्ट्र समान्यतः राज्य या देश से समझा जाता है, जो भौगोलिक सीमाओं से रेखांकित हो . राष्ट्र का एक शाश्वत अथवा जीवंत अर्थ है एक राज्य में बसने वाले समस्त जन समूह जो एक समान संस्कृति से बंधे होंराष्ट्रवाद की तात्कालिक युग में यही शाश्वत परिभाषा है जिसका सजग उदाहरण इज़राइल है , जो यहूदी बंजारों का ऐसा एक ऐसा समूह था जिसके पास कोई भूमि नहीं थी अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन्हें अपनी मूल मातृभूमि “जेरुसुलम” में बसा दिया .

अगर जन राष्ट्र का शरीर है तो संस्कृति इसकी आत्मा है जो लोगों को जोड़े रखती है. इनमें एकता और सामंजस्य बनाये रखता है. यही वह धूरी है जिस पर राष्ट्र  का सर्वागीण विकास आधारित है.  वही संगठित समाज / राष्ट्र ही सामर्थवान होता है जहाँ समाज की शक्ति सार्थक दिशा में राष्ट्र  के सर्वांगीण विकास में एकजुट होती है .इसके बिना राष्ट्र का विकास अधूरा रह जाता है . 

  अग्रेजों के काल खण्ड में  प्रकाशित भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है , “हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म” एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है .1995 के अपने एक आदेश से माननीय उच्चतम न्यायालय ने हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म को भारत वासियों की जीवन जीने की शैली के रूप मे परिभाषित किया है .

भारतीय राष्ट्रवाद उसकी संस्कृति हिन्दुत्व पर आधारित है .राष्ट्रवाद समस्त नागरिकों के प्रति समर्पित विचार है , जिसमें सवर्ण, दलित , पिछड़े, हिन्दू मुस्लिम , सिख, ईसाई सब सम्मिलित हैं .नागरिकों को एकता के सूत्र में बॉधने एवं एक दूसरे के प्रति  सच्ची श्रद्धा समर्पण का भाव ही राष्ट्रवाद है .

  राष्ट्रवाद का सीधा संबंध विकास से है, जो किसी राष्ट्र के अंतिम व्यक्ति के विकास से परिलक्षित होता है . विश्व के आठ बड़े विकसित देशों के समूह जी7 का विचार करें, तो इसमें दो ऐसी आर्थिक शक्तियाँ हैं , जिनको भारतवर्ष के साथ ही लगभग स्वतन्त्रता मिली. तानाशाहों से जापान और जर्मनी ये दो देश द्वितीय विश्वयुद्ध मे बुरी तरह तबाह हो गए थे. काम करने वाले स्वस्थ लोग कम ही बचे थे , अधिकांश आर्थिक एवं राजनैतिक दबाव से ग्रसित थे तथा कर्ज के बोझ से दबे हुए थे . इन राष्ट्रों में  एक समानता थी , इन प्रदेशों की जनता में राष्ट्रवाद की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी . आज ये देश विकसित हैं अगर हम इज़राइल को भी शामिल कर लें जिसे 1948 में आजादी मिली थी तो इन राष्ट्रों  की प्रगति और विकास पूरे विश्व मे सराहनीय और अनुकरणीय है.