अतुलनीय योगदान जो आरएसएस ने देश हित में किए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो एक हिंदूवादी संगठन है ,इसकी स्थापना 1925 में आदरणीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने की थी l आरएसएस शायद दुनिया का इकलौता संगठन है जो खुद के लिए सांप्रदायिक,देश तोड़ने वाले आदि इत्यादि आलोचनात्मक शब्द सुनकर भी डटकर खड़ा है और काम कर रहा है l हालांकि लोग इस संगठन को कुछ भी आरोप देते रहें लेकिन वो सारे हर बार ही निराधार साबित हुए है l
आज हम आपको संघ के ऐसे ही 10 कार्यों से अवगत कराने जा रहे है जो इस संगठन ने देश हित में लिए और वो बहुत ही कारगार सिद्ध हुए l
1. कश्मीर सीमा पर निगरानी, विभाजन पीड़ितों को आश्रय
ये संघ ही था और इसके स्वयंसेवक थे जो अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पडोसी मुल्क पाकिस्तान की सेना की हर एक गतिविधि पर बिना किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रख रहे थे l यह काम न तत्कालीन भारत सरकार कर रही थी, और न ही कश्मीर की राजा हरिसिंह की सरकारl उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर में घुसना चाहा तो भारतीय सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ प्राण दिए l विभाजन के बाद जब दंगे भड़के तो नेहरू सरकार पूरी तरह परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे
2- 1962 का युद्ध
इस युद्ध में हिस्सा लेकर मात्रभूमि की रक्षार्थ और सेना की मदद के लिए देश के कोने कोने से संघ के स्वयंसेवक जिस जोश के साथ सीमा पर पहुंचे, उसका गवाह पूरा हिंदुस्तान था lइन स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और खास तौर पर सेना के जवानों की सहायता में पूरा जोर लगा दिया l स्वयंसेवकों के योगदान का हिसाब आप इस बात से लगा सकते है कि जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ाl परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गएl हालाँकि निमंत्रण दिए जाने पर नेहरु की जमकर आलोचना हुई किन्तु नेहरू ने कहा- “यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गयाl ”
3-कश्मीर का विलय
ये वो दौर था जब स्वतंत्र रियासत कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ये फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे कि कश्मीर का विलय आखिर कहाँ हो और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती ही जा रही थीl और ऐसे में नेहरु सरकार हाँथ पर हाँथ धरे बैठे हुए थी l ऐसे समय में सरदार बल्लभभाई पटेल ने गुरु गोलवलकर से सहायता मांगी l
सरदार के निवेदन पर गोलवरकर श्रीनगर पहुंचे और वहां जाकर महाराजा हारी सिंह से मुलाक़ात की l इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दियाl
4-1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली
ऐसा नही है कि कश्मीर विलय के समय सिर्फ पटेल को ही संघ याद आया हो बल्कि जब पाकिस्तान से युद्ध हो रहा था तो ऐसे समय में तत्कालीन प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री को भी संघ की याद आगयी थी l शास्त्री जी ने संघ के स्वयंसेवको से क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में सहायता देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने जिम्मे लेने का निवेदन किया, जिससे कि इन कामों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद के लिए भेजा जा सके l घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान देने वाले भी संघ के स्वयंसेवक ही थेl युद्ध के समय कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया थाl
5-गोवा का विलय
भारत में दादरा, नगर हवेली और गोवा का विलय कराने में आरएसएस ने निर्णायक भूमिका अदा की थीl वो तारीख 21 जुलाई 1954 थी जब दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गईl संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की भोर पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा लहरा दिया l पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर आरएसएस ने भारत सरकार को सौंप दियाl संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा को मुक्त कराने के लिए जोर शोर से सक्रीय हो गये l गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू सरकार ने मना कर दिया lसरकार का ऐसा रवैया देखकर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन आरम्भ कर दिया l इस आन्दोलन का नतीजा ये हुआ कि जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कई कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाई गयी l हालत जब काबू से बहार हो गये तब मजबूरन भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआl
6-आपातकाल
1975 से 1977 के मध्य का दौर आपातकाल का दौर था जो बड़ा ही कठिन दौर साबित हुआ था l इस आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में आरएसएस की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए जीवान्त होगी l सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी हुई l इस गिरफ्तारी के उपरान्त संघ के स्वयंसेवकों ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना आरम्भ कर दिया l आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं –नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम इन्ही संघ कार्यकर्ताओं ने किया l जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से संभव हो सकी थी l
7-भारतीय मज़दूर संघ
1955 में अस्तित्व में आया भारतीय मज़दूर संघ विश्व का इकलौता ऐसा मज़दूर आंदोलन था,जो विध्वंस के बजाए निर्माण की विचारधारा लिए आगे आया था l कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही आरम्भ कराया थाl आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन हैl
8-ज़मींदारी प्रथा का ख़ात्मा
राजस्थान,ऐसी जगह जहां एक बहुत बड़ी तादात ज़मींदारों की हुआ करती थी, उस राजस्थान में ख़ुद सीपीएम को यह कहना पड़ा था कि संघ के स्वयंसेवक भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में प्रगतिशील शक्तियों के नेता हैंl शेखावत बाद में भारत के उपराष्ट्रपति भी चुने गये l
भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना. विद्या भारती आज 20 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाएं चलाता है. केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त इन सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और 1 लाख से अधिक शिक्षक पढ़ाते हैं. संख्या बल से भी बड़ी बात है कि ये संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा के साथ जोड़े रखती हैंl
9-सेवा कार्य
चाहे वो 1971 में ओडिशा में आया भयंकर चंक्रवात हो या फिर भोपाल की गैस त्रासदी, चाहे फिर वो 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों हो या गुजरात का भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा हर एक विपदा में संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया हैl न सिर्फ भारत में बल्कि नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में जाकर संघ ने राहत कार्य को अंजाम दिया है l
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो एक हिंदूवादी संगठन है ,इसकी स्थापना 1925 में आदरणीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने की थी l आरएसएस शायद दुनिया का इकलौता संगठन है जो खुद के लिए सांप्रदायिक,देश तोड़ने वाले आदि इत्यादि आलोचनात्मक शब्द सुनकर भी डटकर खड़ा है और काम कर रहा है l हालांकि लोग इस संगठन को कुछ भी आरोप देते रहें लेकिन वो सारे हर बार ही निराधार साबित हुए है l
आज हम आपको संघ के ऐसे ही 10 कार्यों से अवगत कराने जा रहे है जो इस संगठन ने देश हित में लिए और वो बहुत ही कारगार सिद्ध हुए l
1. कश्मीर सीमा पर निगरानी, विभाजन पीड़ितों को आश्रय
ये संघ ही था और इसके स्वयंसेवक थे जो अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पडोसी मुल्क पाकिस्तान की सेना की हर एक गतिविधि पर बिना किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रख रहे थे l यह काम न तत्कालीन भारत सरकार कर रही थी, और न ही कश्मीर की राजा हरिसिंह की सरकारl उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर में घुसना चाहा तो भारतीय सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ प्राण दिए l विभाजन के बाद जब दंगे भड़के तो नेहरू सरकार पूरी तरह परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे
2- 1962 का युद्ध
इस युद्ध में हिस्सा लेकर मात्रभूमि की रक्षार्थ और सेना की मदद के लिए देश के कोने कोने से संघ के स्वयंसेवक जिस जोश के साथ सीमा पर पहुंचे, उसका गवाह पूरा हिंदुस्तान था lइन स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और खास तौर पर सेना के जवानों की सहायता में पूरा जोर लगा दिया l स्वयंसेवकों के योगदान का हिसाब आप इस बात से लगा सकते है कि जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ाl परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गएl हालाँकि निमंत्रण दिए जाने पर नेहरु की जमकर आलोचना हुई किन्तु नेहरू ने कहा- “यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गयाl ”
3-कश्मीर का विलय
ये वो दौर था जब स्वतंत्र रियासत कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ये फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे कि कश्मीर का विलय आखिर कहाँ हो और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती ही जा रही थीl और ऐसे में नेहरु सरकार हाँथ पर हाँथ धरे बैठे हुए थी l ऐसे समय में सरदार बल्लभभाई पटेल ने गुरु गोलवलकर से सहायता मांगी l
सरदार के निवेदन पर गोलवरकर श्रीनगर पहुंचे और वहां जाकर महाराजा हारी सिंह से मुलाक़ात की l इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दियाl
4-1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली
ऐसा नही है कि कश्मीर विलय के समय सिर्फ पटेल को ही संघ याद आया हो बल्कि जब पाकिस्तान से युद्ध हो रहा था तो ऐसे समय में तत्कालीन प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री को भी संघ की याद आगयी थी l शास्त्री जी ने संघ के स्वयंसेवको से क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में सहायता देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने जिम्मे लेने का निवेदन किया, जिससे कि इन कामों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद के लिए भेजा जा सके l घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान देने वाले भी संघ के स्वयंसेवक ही थेl युद्ध के समय कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया थाl
5-गोवा का विलय
भारत में दादरा, नगर हवेली और गोवा का विलय कराने में आरएसएस ने निर्णायक भूमिका अदा की थीl वो तारीख 21 जुलाई 1954 थी जब दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गईl संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की भोर पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा लहरा दिया l पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर आरएसएस ने भारत सरकार को सौंप दियाl संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा को मुक्त कराने के लिए जोर शोर से सक्रीय हो गये l गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू सरकार ने मना कर दिया lसरकार का ऐसा रवैया देखकर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन आरम्भ कर दिया l इस आन्दोलन का नतीजा ये हुआ कि जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कई कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाई गयी l हालत जब काबू से बहार हो गये तब मजबूरन भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआl
6-आपातकाल
1975 से 1977 के मध्य का दौर आपातकाल का दौर था जो बड़ा ही कठिन दौर साबित हुआ था l इस आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में आरएसएस की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए जीवान्त होगी l सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी हुई l इस गिरफ्तारी के उपरान्त संघ के स्वयंसेवकों ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना आरम्भ कर दिया l आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं –नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम इन्ही संघ कार्यकर्ताओं ने किया l जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से संभव हो सकी थी l
7-भारतीय मज़दूर संघ
1955 में अस्तित्व में आया भारतीय मज़दूर संघ विश्व का इकलौता ऐसा मज़दूर आंदोलन था,जो विध्वंस के बजाए निर्माण की विचारधारा लिए आगे आया था l कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही आरम्भ कराया थाl आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन हैl
8-ज़मींदारी प्रथा का ख़ात्मा
राजस्थान,ऐसी जगह जहां एक बहुत बड़ी तादात ज़मींदारों की हुआ करती थी, उस राजस्थान में ख़ुद सीपीएम को यह कहना पड़ा था कि संघ के स्वयंसेवक भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में प्रगतिशील शक्तियों के नेता हैंl शेखावत बाद में भारत के उपराष्ट्रपति भी चुने गये l
भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना. विद्या भारती आज 20 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाएं चलाता है. केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त इन सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और 1 लाख से अधिक शिक्षक पढ़ाते हैं. संख्या बल से भी बड़ी बात है कि ये संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा के साथ जोड़े रखती हैंl
9-सेवा कार्य
चाहे वो 1971 में ओडिशा में आया भयंकर चंक्रवात हो या फिर भोपाल की गैस त्रासदी, चाहे फिर वो 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों हो या गुजरात का भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा हर एक विपदा में संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया हैl न सिर्फ भारत में बल्कि नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में जाकर संघ ने राहत कार्य को अंजाम दिया है l