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मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राजा राम भारतीय समाज के जीवन आदर्श

Rams name and its importance in Indian culture

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राजा राम भारतीय समाज के जीवन आदर्श 


मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राजा राम भारतीय समाज के जीवन आदर्श हैं.  राम जी का व्यवहार मर्यादा  से परिपूर्ण और चरित्र पुरुषों में सर्वोत्तम था .  रामराज्य से सुशासन की प्रेरणा, मार्गदर्शन एवं उसकी महत्ता का बोध होता है . रामराज्य वह बैरोमीटर (पैमाना ) है जिससे भारतवर्ष की जनता किसी शासक के शासन का माप करती है। राम के नाममात्र से ही धर्मनिरपेक्षता , सदाचारी एवं त्यागमय जीवन , श्रद्धा , राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति जागृत होती है . राष्ट्रपिता महात्मा गांधी , संत कबीर , रहीम इत्यादि कई महापुरुष मौलवी , संत भी ऐसा विचार रखते थे . राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपनी सर्वधर्म सभाओं मे हमेशा एक प्रथना गाया करते थे –“ रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम” --. उन्होने जनता से राम के नाम को ईश्वर अल्लाह दोनों के नाम से जोड़ कर देखने की विनती की थी . भारतवर्ष मे फिर से रामराज्य आए , ऐसी कामना वे हमेशा करते रहे . भारतवर्ष मे रामजी के आदर्श दर्शन एवं त्यागमय जीवन जन जन मे बैठा है , जिसे चाहकर भी कोई राजनैतिक पार्टी मिटा नहीं सकती .  वे हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं.  
   आज भगवान राम के प्रति राजनीतिज्ञों का  विचार सुनकर बड़ा दुखः एवं खेद होता है, जिन्होने उनके नाम को ही सांप्रदायिक बना दिया है। भगवान राम भारतीय समाज  के जीवन आदर्श हैं, तथा रामराज्य से सुशासन की प्रेरणा, मार्गदर्शन एवं उसकी महत्ता का बोध होता है। रामराज्य वह बैरोमीटर है जिससे भारतवर्ष की जनता किसी शासक के शासन का माप करती है। राम का नाम मात्र से ही धर्म-निरपेक्षता, सदाचारी एवं त्यागमय जीवन, श्रद्धा, राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति जागृत होती है। राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी , संत कबीर , रहीम इत्यादि कई महापुरुष, मौलवी , संत भी ऐसा विचार रखते थे । भारतीय एकता,सहिष्णुता ,वैचारिक व्यापकता एवं  इसकी सांस्कृतिक राष्ट्रीयता  मे आस्था रखने वाली जनता ने हमेशा राम के नाम को ईश्वर, अल्ला और रब के नाम से जोड़कर देखा है.
  
      भारतवर्ष के मुसलमानो में चिस्ती सिलसिला को मानने एवं आस्था रखने वाले सबसे ज्यादा हैं। निजामुद्दीन (1325 ई॰) के निजामुद्दीन प्रषाखा को पूरे भारतवर्ष के मुसलमानों के बीच शीर्ष स्थान मिला है। चिस्ती सिलसिला सर्वधर्मी, सत् (ब्रह्म), ब्रह्मदत-उल-वजूद, जीवों में समानता, जिसकी सारभूत व्याख्या हिन्दुओं के उपनिषद से ली गई थी, के मानने वाले थे। चिस्ती संत ज्यादातर उदारवादी विचारधारा के थे तथा आर्यों के विचारों से प्रभावित थे। चिस्तियों ने नदी के समान उदारता, सूर्य के तरह स्नेह, मनुष्यों के बीच समानता, सभी धर्मों के बीच एकता और धार्मिक पक्षपात एवं कट्टरता से आजादी की हिमायत की थी। मध्यकालीन युग में भारतवर्ष की जनता ने भक्ति विचारधारा को अपनाया। मुसलमान जनता, मौलवी, एवं कवि राधा, राम, कृष्ण या काली माँ की स्तुति सार्वजनिक  स्थलो पर बिना किसी रोक-टोक के करते थे। इस विचारधारा के ज्ञानी संतों एवं मौलवी मेेें रामदास चमार, कबीर बुनकर, घन्ना जाट, सेना नाई, पीपा राजपूत , रामदास और चैतन्य महाप्रभु के नाम प्रमुख है।
       विश्व में सर्वत्र राम का नाम एक सार्वलौकिक धर्म, धर्म-निरपेक्ष व्यक्तित्व के रुप में जाना जाता है।  आज कुछ राजनैतिक पार्टियॉं एवं उसके नेता जो भ्रष्ट व्यवहार एवं आचार से लिप्त हैं , निकृष्ट स्वार्थ एवं अहं के वशीभूत होकर तुष्टीकरण की नीति के तहत राष्ट्र में साम्प्रदायिकता भड़काते हुए अपनी वोट बैंक की स्वार्थलोलुप राजनीति को सार्थक कर रहे हैं। ऐसे निष्ठाहीन असमर्थ राजनेता राम के धर्म-निरपेक्ष, श्रेष्ठ एवं त्यागमय जीवनको बदनाम एवं कलंकित करने पर तुले हुए हैं।

आज ऐसे राजनीतिज्ञ  भारतीय पुराण एवं इतिहास में वर्णित  रामायण के घटनाक्रम कोे नकार ही नहीं उनमें लिखे तथ्यों को अप्रमाणिक एवं अविश्वसनीय बनाने का भी अथक प्रयास  कर रहे हैं। इससे ज्यादा राष्ट्रीय शर्म की  बात और क्या हो सकती है।

लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय व्यवसाय प्रकोष्ठ के कार्यकरणी सदस्य हैं और उन्हे email vksinghbjp@gmail.com और vksinghbjp@rediff.com पे संपर्क कर सकते हैं .