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Rupee Devaluation its reasons in Hindi


रुपये का अवमूल्यन और विवेचना
            जब 2004 में यु पी सरकार ने सत्ता संभाली थी तो उसे विरासत में एक स्वस्थ और मजबूत अर्थव्यवस्था प्राप्त हुई थी.  आर्थिक सर्वेक्षण , महंगाई , चालू खाता घाटा , बजट घाटा, रूपये के अवमूल्यन सभी इस बात को दर्शाते हैं कि इस सरकार  ने विरासत में मिली मजबूत अर्थव्यवस्था को बरबादी के कागार पर खड़ा कर दिया हैइनमें से किसी का विश्व के आर्थिक  व्यवस्था से  शायद ही  कोई सम्बन्ध हो  . इस सरकार ने केवल पूर्व सरकार द्वारा लाये  आर्थिक सुधारों को रोक दिया, बल्कि उसको उल्टी दिशा में ले गए और एन डी सरकार के राजमार्गों के विकास ,नदियों को एक दूसरे से जोड़ने और पेंशन सुधार जैसे जो उपयोगी कदम उठाये  थे उसे जहाँ के तहां रोक दियाभारत सरकार का तेल, गैस, दूरसंचार और इन्सुरेंस आदि सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाना और रिज़र्व बैंक के रूपये के अवमूल्यन के विरुध्द उठाये गए कदम देर से उठाया गया कदम है  परन्तु यह  देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था का भी सूचक है .  1996-97 में जब इस तरह की आशंका थी तो रिज़र्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर  श्री विमल जालान ने तुरंत कदम उठा कर इसे रोक दिया था. केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि यह कदम देर से क्यों उठाया और इससे किस को फायदा होगा  ?

             इस यु पी सरकार ने अपने शासन काल में लगातार बजट में घाटा दिखाया है  और अपने संसाधनों से बहुत ज्यादा खर्च किया जिससे उसका महंगाई पर कोई नियंत्रण नहीं रहा .  लगातार  हर साल बढ़ रहे खर्चों में लोक कल्याण और वोटबैंक बढ़ाने वाले मद में खर्चे का बजट ज्यादा था और इसमें ज्यादातर खर्चों का सही इस्तमाल नहीं हुआ है . इसमें लुट और भ्रष्टाचार ज्यादा हुआ है . इसमें से कुछ पैसा विदोशों में भी जमा हुआ होगा . पूंजीगत खर्च या देश में उद्योग धंधो, कृषि, रोजगार बढ़ाने या स्वरोजगार में निवेश को प्रोत्साहन वाले योजना और आधारभूत संरचना के मद में किये गए खर्च का प्रतिशत लगातार घटता रहा है . इन सबका प्रतिकूल प्रभाव देश की आर्थिक अवस्था पर पड़ा है . एक्सपोर्ट या निर्यात को बढ़ावा देने वाली योजनाओं पर ध्यान देकर उनपर भी कर लगा दिया गया और आयात पर ज्यादा ध्यान दिया गया जिससे विदेशी मुद्रा का भण्डार कम हो गया.  इससे देशी व्यापारियों को घाटा और विदेशियों को फायदा हो रहा है. व्यापार और व्यापारी आज हासिये पर है . विदेशी पूंजी के निवेश के नाम पर स्वदेशी उद्योग और धंधो को बंद किया जा रहा हैं. विदेशी चीज और विदेशी संस्कृति को आम आवाम पर जबरन थोपा जा रहा है. स्वदेशी भावना को कुचल कर विदेश और विदेशियों को ही फायदा पहुंचाने को अहमियत दी गई है .

            मुद्रा का भण्डार बरक़रार रखने के लिए विदेशी निवेश पर ज्यादा ध्यान दिया गया वह भी पूंजीगत प्रत्यक्ष निवेश पर कम और ज्यादा ध्यान सट्टा बाज़ार  और शेयर  के निवेश में दिया गया इससे इनके पलायन का तुरन्त खतरा बना रहा . आयातित कच्चे पेट्रोलियम तेल के दाम और आयात में बढ़ोतरी और इसपर निर्भरता और सोने का अत्यधिक प्रचलन और देश में उसके आयात ने देश के चालू खाता घाटा पर जबरदस्त बढ़ोतरी की है .  भारत स्थित विदेशी निवेश करने वाली कंपनीयों के लाभांश बाहर के देशों मे भेजने से यह संकट और भी बढ़ गया है. 2010 मे यह 4 अरब डॉलर था जो 2012 मे बढ़कर 12 अरब डॉलर हो गया है



रूपया का मूल्य विदेशी डालर के मुकाबले घटने से वह वस्तु जो विदेश से डालर से ख़रीदे जाते हैं उनका मूल्य और भी बढ़ जायेगा इसमें पेट्रोलियम पदार्थ ( जैसे : रसोई गैस , डीजल, किरासन तेल, पेट्रोल ) और उसके उत्पदान में लगने वाला कच्चा तेल , सोना , माल उत्पादन के लिए मंगाये गए मशीन आदि प्रमुख हैं . इससे यातायात, माल ढ़ुलाई का भाड़ा , कृषि , माल उत्पादन की लागत इत्यादि सभी महंगे हो जायेंगे जिससे चीजें और महंगी हो जायेंगी और आम आदमी का जीना और मुश्किल हो जायेगा . वैसे भी महंगाई आसमान छु रही है और लोगों का जीना दुर्लभ हो गया है .

            रुपया का मूल्य घटने से विदेशी लोगों को ज्यादा फायदा होगा और उन्हें यहाँ की चीजें सस्ती दाम पर मिल जायेंगी .रूपये के मूल्य घटने से उन लोगो को भी ज्यादा फायदा होता है जिसका काला धन विदेशी बैंकों में जमा है और इसमें कुछ खास किस्म के व्यापारी , उद्योगपति , सरकारी अधिकारी और राजनीतिज्ञ  शामिल हैं . अगर किसी व्यक्ति ने 50 रूपये के मूल्य  पर 1000 ड़ालर विदेशी बैंक में जमा किया है तो उसका मूल्य आज रूपये में 60,000 ( 60 रूपये प्रति डॉलर के दर से ) हो जायेगाआम आदमी के वोट  से जीत हासिल कर आयी कांग्रेस की ये सरकार,  कुछ खास आदमियों के हित में काम कर रही  है .         

            केंद्र सरकार  के देर से लिए फैसले से यह कहना कठिन है की अर्थव्यवस्था फिर पटरी पर आयेगी  तब जबकी रूपये के सट्टा बाज़ार के  फॉरवर्ड सौदों में  भी रूपये के अवमूल्यन कि उम्मीद है . ज्ञात हो की भारत के आधे से अधिक डॉलर रूपये का फॉरवर्ड सौदे विदेशों में होते हैं और भारत में उठाये गए ये कदम का असर विदेशी भूमि पर नहीं पड़ता है. इस देरी के दुष्परिणाम से बचना नामुमकिन है. अगर  केंद्र सरकार ये मानती  हो की  चालू खाता घाटा , बजट घाटा में सुधार किये बिना और बिना अर्थव्यवस्था में सुधार के, रूपये का अवमूल्यन रुक तो यह उसका सपना ही है