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भारतीय शिक्षा और राष्ट्रीयता

 

प्राचीन काल में शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली भारत में अस्तित्व में थी. उपनिषदों मे इसके उल्लेख है जहाँ आठ से दस वर्ष की आयु के बच्चे गुरु के सान्निध्य मे रह कर विद्या अध्ययन किया करते थे. शिक्षा, समाज-कल्याण एवं धार्मिक आचरण हेतु किए गए प्रयासों की व्यवस्थित प्रणाली थी. शिक्षा का अर्थ मनुष्य की आन्तरिक, अध्यात्मिक, रचनात्मक मानसिक विकास और आत्मिक इच्छापूर्ति के लिए उपयुक्त प्रणाली, नियम, विधि और व्यवस्था विकसित करना था. यह प्रणाली इस सिद्धान्त पर आधारित थी कि मनुष्य के विकास का अभिप्राय उसकी बुद्धि एवं स्मरण शक्ति का स्वाभाविक सामर्थ्य और रचनात्मक विकास हो सके. संसार के सबसे प्राचीन एवं प्रसिद्ध विश्वविद्यालय मे भारत का नालंदा और तक्षशिला आदि विश्वविद्यालय सुविख्यात थे .इन विश्वविद्यालयों में देश ही नहीं, विदेश के विद्यार्थी भी अध्ययन के लिए आते थे. सनातन या हिन्दू समाज प्राचीन काल से ही अपनी प्रजा या समाज को शिक्षित करना अपना मौलिक कर्तव्य समझती थी.यही वह आधार था जिसपर हिन्दू संस्कृतिस्थापित थी. भारतवर्ष में प्रथम अंग्रेजी स्कूल 1811 में खोला गया, इससे पहले भारतवर्ष में लगभग 732000 गुरुकुल थे.

 आज की शिक्षा प्रणाली को प्राय: लोग मैकाले शिक्षा प्रणाली के नाम से पुकारते हैं. मैकाले के शब्दों में: “मैं भारत के कोने कोने में घूमा हूँ. इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता कि हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे. जब तक इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूँ कि हम इसकी पुरानी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था उसकी संस्कृति को बदल डालें.” उसने पूरी तरह से भारतीय शिक्षा व्यवस्था को खत्म करने और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था को लागू करने का प्रारूप तैयार किया. अंग्रेज़ो को समझ मे आ गया था कि उनकी संख्या नगण्य है. इतने बड़े राष्ट्र पर शासन करने हेतु उन्हे ऐसे भारतीय मूल के अंग्रेजों का निर्माण करना होगा, जो भारतीय जनता पर शासन कर सकें और जरूरत पड़ने पर उनका दमन भी कर सकें. इसके लिए मैकाले ने भारतियों को एक ऐसा पाठ्यक्रम पढ़ाया जिसमे भारतियों का पराक्रम, वीरता, ज्ञान, विज्ञान, परम्पराओं, गौरवपूर्ण इतिहास और संस्कृति का उचिंत वर्णन या कोई उल्लेख ही नहीं था .बल्कि उसकी रचना इस प्रकार की गई जिससे हमारी एकता खण्डित हो. हमारी उत्कृष्ट कला, धर्म, दर्शन, इतिहास, सभ्यता और संस्कृति को नीचा और विकृत बनाने का भरपूर प्रयास किया गया और उसे पाठ्यक्रम में शामिल किया गया और इस प्रकार मानव सभ्यता का इतिहास ही बदल कर रख दिया. इसी दिशा में कार्य करते हुए उन्होंने हमारी वर्ण व्यवस्था जो वास्तव में कार्य निर्धारण की प्रथा थी, को जाति व्यवस्था में बदलने में भरपूर भूमिका निभाई और समाज के विभिन्न वर्गों और धर्मों के बीच परस्पर दूरी और एकता में खाई बनाने में पूरी जोर लगा दी और इसमें  कुछ हद तक सफल भी रहे . मेगास्थनीजने अपने भारत यात्रा के विवरण (चौथी शताब्दी ई॰पू॰) में यह स्पष्ट लिखा है कि भारतीय जाति प्रथा एक व्यवसाय-निर्धारण की व्यवस्था थी. यास्क मुनि के अनुसार – “जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विजः । अर्थात व्यक्ति जन्म से शूद्र है एवं संस्कार से वह द्विज बन सकता है .

 1700 ई०पूर्व से 1947ई० भारतवर्ष के चोल राजवंश, नंद साम्राज्य, मगध, मराठा साम्राज्य, मेवाड़ राजवंश, प्राचीन बिहार मे बसी गणराज्य, मौर्य साम्राज्य इत्यादि के वीर ,पराक्रमी और चक्रवर्ती सम्राटों के कार्यकाल का गौरवशाली इतिहास है. आर्यावर्त (भारतवर्ष) का इतिहास विभिन्न आक्रांताओं शक, यमन, कुषाण और यूनानी सम्राट का भी है जिन्होंने भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट परम्पराओं के साथ अपने को आत्मसात किया. इस कालखंड के घटनाओं का कोई भी उल्लेख अंग्रेजों द्वारा पढाये गए पाठ्यक्रम में नहीं शामिल किया गया.

 चोल शासकों ने अपनी विजय यात्रा में आज के केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, बंगाल और दक्षिण एशिया में पूरा हिंद महासागर व श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया में अंडमान-निकोबार, मलेशिया, थाईलैंड एवं इंडोनेशिया तक को फतह किया था.

 भारतवर्ष अंकगणित,ज्यामिति,त्रिकोणमिति, रसायन शास्त्र, विज्ञान, भूगोलशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र , शल्य चिकित्सा इत्यादि कई आधुनिक ज्ञान-विज्ञानं का जन्मदाता है और आज के कुछ अविष्कार जो विदेशियों के नाम से दर्ज हैं वह वास्तव में भारत के ऋषि मुनियों की ही देन है. इसमें एक विशिष्ट स्थान कणाद मुनि का है जिन्होंने परमाणु के सिद्धांतों की खोज लगभग 2600 वर्ष पहले ही कर दी थीं. न्यूटन ने अपने शोधपत्र प्रिंसिपिया ऑफ मैथमैटिका में गति के तीन नियम बताये थे, जिसमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति, गतिज ऊर्जा और मोमेंटम के बारे में सिद्धांत दिए गए थे, जबकि भारतीय दर्शनशास्त्र के वैशेषिक सूत्र के अनुसार आचार्य कणाद ने 600 ई० पूर्व में ही गति के नियमों और गुरुत्वाकर्षण शक्ति को स्थापित कर दिया था.

 इस्लाम का विस्तार 622ई. से मक्का मदीना में पैगम्बर मुहम्मद के आगमन से हुआ. जिन्होंने एक सेना संगठित करके 100 वर्षों में ही पूरे अरब में इस्लाम धर्म की स्थापना की. इसके समर्थकों के साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में अटलांटिक समुद्र से पूर्व में सिन्धु नदी तक और उत्तर में कैस्पियन सागर से दक्षिण में नील नदी की घाटी तक हो गया; जिसमें स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस का दक्षिणी भाग, उत्तरी अफ्रीका, सम्पूर्ण मिस्र, अरब, सीरिया, मेसोपोटामिया, आर्मीनिया, परशिया, सम्पूर्ण मध्य-एशिया, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध आदि सम्मिलित थे. इस्लामिक शासकों ने 712 ई० में ही भारत के सिन्ध प्रान्त पर कब्ज़ा कर लिया था, परन्तु इसके बाद इस्लामिक शासक आक्रमण करते रहे और हिन्दू राजाओं ने उनका डट कर मुकाबला किया और 1526 तक उन्हें खदेड़ते रहे .मुगलवंश ने 15261857ईस्वी में अपना प्रभुत्व भारत के कुछ भागों में जमा लिया था. इस क्रम में ऐसा समय  भी आया जब भारत वर्ष में राजपूतों की जनसंख्या घट कर मात्र 2 % रह गयी थी. परन्तु भारत के वीरों के इस काल खंड के संघर्ष, वीरता, मातृभूमि के प्रति बलिदान की गौरवगाथा को जानबूझ कर पाठक्रम में नहीं शामिल किया गया ना ही भारतीय इतिहास में इसका वर्णन है.  

 मुग़ल शासकों के आगमन के बाद हिन्दुओं को जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया. भारतवर्ष के अधिकांश मुसलमान धर्मान्तरित हैं इसलिए इनका रहन-सहन, खान-पान,व्यवहार, दीप जागृति के प्रति लगाव, त्योहारों में गाजे बाजे और संगीत, ताजिया निकलना और मजार का धार्मिक महत्त्व, ये सभी अरब देशों के मुसलमानों से बिलकुल भिन्न हैं.इसी कारण भारतीय मुसलमानों को अरब देशों के मुसलमान हिन्दू- मुसलमान के नाम से भी पुकारते हैं.

    मध्यकालीन (1206 ई॰-1761 ई॰) में  भक्ति विचारधारा ने जन्म लिया जिसका प्रचार प्रसार इस युग के ज्ञानी  हिन्दू और मुसलमान एवं सूफी संतों ने किया जिसमे रामदास चमार, कबीर बुनकर, रहीम, धन्ना जाट, सेना नाई, पीपा राजपूत, रामदास और चैतन्य महाप्रभु का नाम प्रमुखता से वर्णित है. धार्मिक विचारधारा ने धर्म, जाति और वर्गों की सारी सीमायें तोड़ते हुए हिन्दू समाज को एकता एवं समानता के सूत्र में पिरोते हुए उन्होंने हिन्दुत्व का सही अर्थों में प्रचार और प्रसार किया. मुसलमानों ने हिन्दुओं की तरह जीना सीख लिया, भारत को अपनी मातृभूमि माना. उनके खान-पान, कपड़े, आचार-विचार, कार्य-संस्कृति एवं जीवन शैली को अपनाया. धार्मिक विभिन्नता के बावजूद उनके रोजमर्रा के कार्यों में समानता थी .यह निःसन्देह इस वजह से था क्योंकि अधिकांश मुसलमान हिन्दू धर्मांतंरित थे,जो अपनी पुरानी आदतों एवं रहन-सहन को  सहज नहीं भूल पाए थे.

 ब्रिटिश राष्ट्र की जानकारी 43 ई० तक विश्व को नहीं थी . ऐतिहासिक वर्णनानुसार कोई 2000 साल ई॰पू॰ आर्य प्रजाति अपने मूल मातृभूमि से गमन कर पश्चिम एशिया  दक्षिण एवं पूर्व की ओर देशान्तर हुए, और भारतवर्ष मे आकर बस गए. आज ज़्यादातर भारतीय इसी इतिहास को सही मानते हैं. पश्चिमोत्तर भारत की व्याख्या प्रायः भारतीय इतिहास का सार है, जो मनु (भारतीय ग्रंथों के अनुसार प्रथम मानव) के आर्यावर्त्त के रूप में जाना जाता है. गुजरात मे समुद्री सीमाओं के अंदर जलमग्न द्वारिका नगरी की जानकारी सभी को है, वास्तव मे इस कालखंड को आधुनिक वैज्ञानिक गणनाकारों ने पल्स -1 अ का नाम दिया है.पृथ्वी का तापमान बढ्ने से 11,500 से 12,700 वर्ष ई०पूर्व समुद्र का जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी होती गयी, जिसके कारण द्वारिका के साथ  कई प्राचीन भारतीय नगर जलमग्न हो गए. हमारी सभ्यता और संस्कृति का उद्भव वास्तव में  मानव उत्पत्तिकाल से ही वर्णित है. ऋग्वेद और महाभारत के प्रथम स्कन्ध के अनुसार यह स्पष्ट होता है.

  आजादी के 70 सालों के बाद तक भारत में अंग्रेजी निर्मित पाठ्यक्रम ही पढ़ाया जाता रहा है. हद तो तब हो गयी कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ने भी अपनी पुस्तक “डिस्कवरी ऑफ़ इन्डिया” में इसी ब्रिटिश निर्मित इतिहास का वर्णन किया और दूरदर्शन पर इसपर धारावाहिक शो का प्रसारण भी किया.ऐसी कहावत  हैं कि जो सभ्यता अपने इतिहास को भूल जाती है इतिहास उसे भुला देता है .

 ब्रिटिश शासकों के इतने वर्ष के प्रयत्न के बावजूद भारतीय परम्पराएँ, रहन-सहन, धर्म, सभ्यता और सांस्कृतिक समानता और निर्भरता के कारण भारत का हर वर्ग को एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. यह लगाव  विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा दिखता है. इसलिए हिंदुत्व नामित भारतीय संस्कृति पराधीन होने के बावजूद भी जीवित है  और इसी लिए हमारी राष्ट्रीयता जीवित है और आज आजाद भारत में उसका विकास हो रहा है .

 परन्तु आज कुछ राजनैतिक पार्टियों और विदेशी ताकतों को अपने निहित स्वार्थ के लिए अंग्रेजो की नीति ही पसंद आती है. वे हर छोटी सी बात पर देश को विभाजित करने और जलाने पर आतुर हो जाते हैं. जिससे भारतीय राष्ट्रीयता पर गंभीर संकट के बादल छाये हुए हैं .  

23 सितम्बर 2022 के आज के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित