यूपीए सरकार और उसकी गलत आर्थिक और राजनीतिक नीतियाँ
जब यह यूपीए सरकार आई थी तो उसने यह जनता से
वादा किया था कि सौ दिन में महँगाई कम कर देंगे, ऐसे झूठे वादे वे बार-
बार देश की जनता को करते रहे, परन्तु इस पूरे शासनकाल में महंगाई पर लगाम
लगाने की एक भी ईमानदार कोशीश नहीं
की गई . मंहगाई दर राजग सरकार मे औसतन 3.8 प्रतिशत रह गई थी जो आज इस केन्द्र सरकार
की गलत आर्थिक नीतियों के कारण 10 प्रतिशत से ज्यादा हो गयी है . जब यूपीए ने अपना
शासन आरंभ किया था तो विरासत मे मिली मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण विकास दर ठीक ठाक
रहा परंतु आज यह घट कर 5
प्रतिशत से नीचे रह गया है . लगातार साल दर साल बढ़ रहे बजट
में घाटा (जिसमे राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा शामिल है), और विकास और उत्पादन के मद मे हुए खर्चों के अनुपात मे, लोक कल्याण में हुए खर्चों और वोटबैंक
बढ़ाने वाले लोक-लुभावन योजनाओं के मद में खर्चे
का बजट के अनुपात मे लगातार बढ़ोतरी, ने राष्ट्र के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल असर
डाला जिससे महंगाई पर इस सरकार का नियंत्रण नहीं रहा और पूरे राष्ट्र में उत्पादन घटने
लगा . महंगाई के कारण तैयार माल और खाद्यानों की लागत और उसका मूल्य लगातार बढ़ता रहा
. इस
घटते हुए उत्पादन और बढ़ती हुई जनसंख्या ने वस्तुओं की आपूर्ति में जबर्दस्त कमी कर
दी. इन सबका प्रतिकूल प्रभाव
अर्थव्यवस्था पर पड़ा और एक्सपोर्ट या निर्यात भी घटने लगा और माल की आपूर्ति बनाये
रखने के लिए विदेशों से माल आयात किया जाने लगा, जिससे विदेशी मुद्रा
का भण्डार कम हो गया और चालू खाता घाटा में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है . भारत स्थित विदेशी
निवेश करने वाली कंपनीयों के लाभांश बाहर के देशों मे भेजने से यह संकट और भी बढ़ गया है. 2010 मे विदेश मे भेजा गया यह लाभांश 4 अरब डॉलर था जो अब बढ़कर 12 अरब
डॉलर या
₹ 747.48 अरब रूपये
का हो गया है. बढ़ते
हुए इस अनुत्पादक और
गैरज़रूरी खर्च में खूब
भ्रष्टाचार हुआ है और इसको बरकरार रखने के लिए देश और विदेश दोनों से खूब कर्ज लिया गया है . आईएमएफ़ के अप्रैल 2011 के डाटा के अनुसार भारतवर्ष का कुल सरकारी ऋण आज
विश्व के सभी उभरती (प्रगतिशील) अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे अधिक है, और यह इसके सकल घरेलू उत्पाद का 68.05% है. देश का कुल वाणिज्यिक कर्ज जो कुल विदेशी कर्ज का
31 फीसदी हिस्सा हैं आज 24,127.56 खरब रूपये का है. इसमे से 25 % अल्प अवधि का कर्ज
है जिसका भुगतान 31 मार्च 2014 तक कर देना है. यह आँकड़ा मार्च
2008 मे मात्र 338.40 खरब रुपया था, जो 2008-09 में देश के चालू खाता घाटा का 2.5 % था अब 2012-13 मे यह बढ़
कर 5 % का हो गया है . चालू खाता घाटा की इस बढ़ोतरी का भुगतान ज़्यादातर पुनः कर्ज
ले कर इस सरकार मे हो रहा है. प्रवासी भारतियों के डिपॉजिट और चालू खाता मे जमा
अन्य डिपॉज़िट में मिले विदेशी पैसे, अगर रूपये के अवमूल्यन
या भारतीय अर्थव्यवस्था मे गिरावट से हुए
अविश्वास के या और किसी भी कारण से कम हो गया, तो देश एक
विषम आर्थिक कुचक्र मे फँसता चला जायेगा. कर्ज लेकर घी पीने वाली कहावत आज
हिंदुस्तान पर सार्थक हो रही है .
हद तो तब हो गई जब इस विदेशी माल को बेचने
के लिए भी विदेशों व्यापारियों को खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के अनुमती देकर आमंत्रित
किया गया . इससे हमारे देश के 4.5 करोड़ खुदरा दूकानदारों और उसपर आश्रित 30 करोड़ लोग
के रोजी रोटी का सवाल उठ खड़ा हुआ है. पी. चिदंबरम केन्द्रीय वित्त मंत्री ने इंग्लैंड मे जाकर यह बयान
दिया है जिससे इस सरकार की मनसा स्पष्ट होती है –“ईस्ट इंडिया कंपनी
400 साल भारत मे व्यापार कर मुनाफा किया है,
मैं आपको फिर निमंत्रण
देने आया हूँ अगले 200 सालोंके लिए आप फिर भारत चले आयें !देअर विल बी ह्यूज रिवॉर्ड
फॉर इंडिया – “
जब 2004
में यु पी ए सरकार ने
सत्ता संभाली थी तो उसे विरासत में एक स्वस्थ और मजबूत अर्थव्यवस्था प्राप्त हुई थी.
आर्थिक सर्वेक्षण , महंगाई , चालू खाता घाटा , बजट घाटा, रूपये के अवमूल्यन सभी इस बात को दर्शाते हैं
कि इस सरकार ने विरासत में मिली मजबूत अर्थव्यवस्था
को बरबादी के कागार पर खड़ा कर दिया है . इनमें
से किसी का विश्व के आर्थिक व्यवस्था से सम्बन्ध
नहीं है . इस सरकार ने न केवल भाजपा गठबंधन में लाये आर्थिक सुधारों को रोक दिया, बल्कि उसको उल्टी दिशा में ले गए और एन डी ए सरकार ने राजमार्गों के विकास
,नदियों को एक दूसरे से जोड़ने और पेंशन सुधार जैसे जो उपयोगी कदम उठाये उसे
जहाँ के तहां रोक दिया . भारतवर्ष की 50 % जनता आज अपने जीवनयापन के लिए
कृषि और संबद्धित कार्यकलाप पर
निर्भर करती है परंतु उनकी आय भारतवर्ष के
कुल सकल घरेलू उत्पाद मे 16.6% ही है .
अमेरिका के बाद विश्व मे सबसे ज्यादा कृषि-योग्य
भूमि भारत मे ही है परंतु वर्षो से चली आ रही गलत आर्थिक और राजनीतिक नीतियों के
कारण यहाँ इस क्षेत्र मे उत्पादकता विश्वस्तरीय नहीं है और विश्व के सबसे उच्च स्तर के
पैदावार से भारत की औसत कृषि उपज
30% से 50% है . किसान आज भी गरीब है, और उसे आज भी अपने कृषि के लिए मौसम और प्रकृतिक वर्षा पर
निर्भर रहना पड़ता है. भूजल से निकाले गए जल से सिचाई का खर्च डीजल और बिजली के
महंगे होने से बहुत पड़ता है, और इससे किसानो को फायदा भी नहीं
होता. डीजल के कृषि मे उपयोग से देश को विदेशी मुद्रा ज्यादा खर्च करनी पड़ती है
जिससे देश का चालू- खाता घाटा और भी बढ़ जाता है .भारत मे आज 52.6% भूमि मे ही सिंचाई
व्यवस्था है जबकि यह दुनिया के सबसे आद्र प्रदेशो मे से एक है. भारतवर्ष मे औसतन
हर साल वर्षा 47.6 इंच होती है और कुल अवक्षेपण (वर्षण) 4000 अरब घन मीटर है इसमे से मात्र 1123 अरब घन
मीटर का ही उपयोग हो पाता है बाकी पानी बर्बाद होकर नदियों के रास्ते बहकर समुद्र
मे चला जाता है , जो हमारे देश कि प्राकृतिक सम्पदा की बरबादी है .इस सम्पदा
के समुचित कृषि और संबद्धित कार्यकलाप मे उपयोग मे लाने के लिए एनडीए कि सरकार ने
नदियों को एक दूसरे
से जोड़ने की
व्यवस्था की थी और इसके लिए प्रचुर धन का आबंटन 2004 के बजट मे किया, जिसे रोककर यूपीए ने अनुत्पादक और गैरज़रूरी खर्चों मे
इसका आबंटन कर दिया . आज देश मे अनाज, सब्जी, फल आदि की महँगाई इसी गलत यूपीए सरकार की नीति का परिणाम है.
अर्थशास्त्र
के सिद्धान्त के अनुसार जब जब माल (वस्तुओं )की आपूर्ति मांग से अधिक होती है तो वस्तुओं की कीमत घटती है
और जब जब माल की मांग उस वस्तु की आपूर्ति से अधिक होती है तो वस्तुओं की कीमत बढ़ती है . इसी सिद्धान्त ने
अपने प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर दिखाना शुरू कर दिया और चीजें महंगी होने लगी
. कृषि उत्पादन और औद्योगिक विकास मे लगातार घटोतरी को आँकड़ो मे हेराफेरी कर ,प्रगति सूचिकांक सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी को लगातार ऊँचे स्तर पर बढ़ाए रखा गया. आरंभ के वर्षो मे मूल अंक( बेस) मूल्य
सूचकांक (थोक और खुदरा कृषि और औद्योगिक उत्पादन के मूल्य ) और अन्य सूचकांक और आँकड़ो
मे हेराफेरी कर जीडीपी दर को उच्च स्तर पर रखने की भरपूर कोशिश की गई और कुछ हद तक
वह सफल भी रही.
पिछले
एक दशक से देश की सत्ता को संचालित करती काँग्रेस नेतृत्व की यूपीए (संप्रग) सरकार ने भ्रष्टाचार और महंगाई
के सभी रिकार्ड तोड़ दिया है. ऐसी कमजोर व दिशाहीन सरकार और उसके सहयोगियों ने देश को घोर आर्थिक, सामरिक और राजनैतिक संकट में ढकेल दिया है. चीन और पाकिस्तान आए दिन हमारी सीमाओं मे घुस आते
हैं. आतंकवाद को प्रोत्साहित कर निरीह (निर्दोष)
जनता को परेशान तो करते ही हैं , धोखे से हमारे वीर सैनिकों के सर भी काट कर अपने साथ
ले जा रहे हैं. अमेरिका का क्या कहना अब तो छोटे छोटे देश भी हमेँ और हमारे राजनयिकों
को आँख दिखा रहे हैं . इंडियन मुजाहिद्दीन और लश्करे तोएबा जैसे संगठन देश और बिहार के हर कोने
मे अपना पैर पसार चुके हैं . सिरियल बम धमाके से हमारे धार्मिक स्थल चाहे वह बोधगया हो या अक्षरधाम मंदिर, गांधीनगर या सार्वजनिक स्थल जैसे गाँधी मैदान पटना , हैदराबाद के मार्केटिंग एरिया या अहमदाबाद और जयपुर के भीड़ भरे इलाके, कोई स्थान आज सुरक्षित नहीं है. जहाँ आज आम आवाम और जनता महंगाई , भ्रष्टाचार, नक्सलवाद और आतंकवाद से त्रस्त है और चारो
ओर हायतौबा मची हुई है वहीं केंद्र सरकार के मंत्रियों और राजनेता कह रहे
हैं कि कहां है भ्रष्टाचार, आतंकवाद या महँगाई . उन्हे यह सब सिर्फ विपक्ष का आरोप और एजेंडा लग रहा है . उन्हे
आज भी भ्रष्टाचार, आतंक और महंगाई कहीं नजर नहीं आती है और इस
संदर्भ मे वे बेतुकी अनर्गल बयानबाजी कर जनता के जख्मों पर नमक लगा रहे हैं .
आज काँग्रेस और करप्सन (भ्रष्टाचार) पर्यायवाची
(समानार्थी) शब्द बन गए हैं, जहां भी काँग्रेस या उसके सहयोग से बनी सरकारें हैं, वहीं भ्रष्टाचार बढ़ा है . इन्होने देश की हर सम्पदा को लूटा है , चाहे वह आसमान का हो, जमीन का या पाताल में और अब वह जनता के जेब
(पाकिट) मे हाथ डाल कर उसे लूट रही है . इस यूपीए सरकार ने 2 जी स्पेक्ट्रम (आकाशीय
तरंग) की नीलामी (इससे मोबाइल और इंटरनेट आदि
सेवाएँ संचालित होती हैं) और वेस्टलैंड हेलिकोप्टर
बिक्री मे अरबों, खरबों रूपये का घोटाला कर देश के आकाश को लूटा
, जमीन पर तो कई घोटाले हुए हैं जैसे आदर्श सोसाइटी घोटाला (जहाँ सेना की जमीन
सोसाइटी को फ्लॅट के लिए दे कर राजनेता और नौकरशाही ने मिलकर लूटा ), कॉमन वैल्थ खेल घोटाला, दामाद घोटाला ( जहाँ सोनिया गांधी के दामाद
को प्रशासन और बिल्डर द्वारा अरबों का फायदा पहुंचाया गया) , टट्रा सेना के ट्रक में घोटाला इत्यादि , इन्होने पाताल को भी नहीं छोड़ा है और कोयला के 142 ब्लॉक को 145 प्राइवेट
कंपनीयों को 2006-2009 के बीच नियमों को ताक पर रख लगभग मुफ्त मे दे दिया और देश की
1700 करोड़ टन की कोयले को जिसकी कीमत लगभग 51 लाख करोड़ है , यूपीए सरकार के केन्द्रीय मंत्री और
काँग्रेस के सभासदों ( एम पी ) के रिश्तेदार और उनके निकट के जानने वाले को आबंटित कर मिल
बाँट कर खाया . ज्ञात हो कि इस घोटाले में कोयला मंत्रालय के साथ साथ प्रधान मंत्री कार्यालय भी लिप्त पाये गये है .
अंतिम
घोटाला है आम आदमी के पॉकेट का घोटाला जो रूपये के अवमूल्यन ( मूल्य गिरने से ) और यूपीए सरकार द्वारा रचित कमरतोड़ महँगाई जिसके कारण
आम आदमी को भीषण कष्ट झेलना पड़ रहा है . आज आम जनता अपनी जेब मे रुपया लेकर बाहर निकलता
है तो अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है उसकी स्थिति यह होती है कि वह इस रूपये से क्या खरीदे और क्या न खरीदे . हर वस्तु की कीमत दिन दोगुनी रात चौगिनी
बढ़ती जा रही है और अब रूपये के अवमूल्यन से घटती इसके क्रय शक्ति के
कारण आम आदमी की स्थिति और भी विषम हो रही है और उसका जीना और मुश्किल हो रहा है. भारत
की जनता आज जहाँ निर्धनता, कुपोषण, बेरोजगारी, अभावों से जूझ रही है, वहीं संप्रग सरकार के राजनीतिज्ञ और नौकरशाह
भष्ट्राचार से लूटे धन को विदेशों में जमा करने और अन्धाधुन खर्च करने पर तुले हुए हैं जिससे महंगाई और बढ़ रही है.
बिहार में इस काम को सरकारी अफसर और जदयू के नेता मिल कर अंजाम दे रहें हैं. यहाँ ऑफिसरशाही और भष्ट्राचार आज चरम
सीमा पर है. स्विस बैंक
असोशिएशन के आंकड़ो के अनुसार स्विस बैंकों में
भारतवर्ष का 1,45,600 करोड़ यूएस डॉलर यानी ₹ 90,54,136 करोड़
रूपये काला धन जमा है . विदेशी मीडिया के अनुसार विश्व के दस सबसे अमीर
राजनैतिज्ञों मे से आज भारत के दो कांग्रेसी महिला सांसद हैं.
विश्व की सभी प्रगतिशील सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था
को देश मे उत्पादन ( माल और सेवाएँ) वाली योजनाओं
में प्रोत्साहन देकर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी०डी०पी०) को बढ़ाने का अथक प्रयत्न करती
हैं , इसके लिए पूंजीगत निवेश में वृद्धि कर और उसमे
प्रोत्साहन देकर देश में उद्योग धंधो, कृषि,
रोजगार बढ़ाने या स्वरोजगार
को सहायता देने वाले योजना और आधारभूत संरचना के मद में खर्च का प्रतिशत लगातार बढ़ाते
रहती हैं, उनका प्रयास देश और
उसकी जनता उनकी संस्थाओं को स्वालम्बी बनाना रहता है, जिससे भविष्य मे अपने इस पूंजी निवेश से, उनपर ‘कर’
लगा कर और विकास किया
जा सके . आम आवाम का सर्वांगीण विकास ही उनका एक मात्र उद्देश्य और लक्ष्य होता है . मनमोहन सिंह कि यह शायद विश्व कि पहली सरकार है, जिसने उपभोग व्यय और खपत व्यय को प्रोत्साहन देते हुए हमारी अर्थव्यवस्था
का बाजारीकरण कर उपभोक्तावाद की नीतियों की ओर ढकेल दिया है . आज देश में उद्योग धंधो, कृषि, रोजगार बढ़ाने या स्वरोजगार आधारभूत संरचना
के
मद में पूंजी निवेश को उपेक्षा कर, उपभोगी खर्च जैसे खाद्य सुरक्षा, इन्दिरा आवास योजना, मनरेगा, वृद्धा पेंशन, विभिन्न
सब्सिडि योजनाएँ आदि लोक लुभावन और वोटबैंक बढ़ाने वाले मद में
खर्चे को बढ़ावा दिया जा रहा
है,
जिससे हमारी अर्थव्यवस्था
उत्पादक की न होकर उपभोगी देश की हो गयी है. हद तो यह है की हमारी सरकार विदेशी निवेशकों से ऐसा
व्यापार सम्झौता करती है जिससे वे अपना कच्चा माल हमें भेजते हैं एवं मामूली कीमत
पर उत्पादन हमारे देश के ठीकेदारों (और उनके उत्पादनकरने वाली कंपनीयों) से करवाते
हैं फिर उत्पादित मालों पर उसकी कीमत वे तय कर, मनमानी रेट टैग इन ठीकेदारों से ही
लगवाते हैं. इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हमारे द्वारा उत्पादित माल विदेशों कि
तुलना मे हमें ही महंगी मिलती हैं. आज स्वदेशी उद्योग धन्धे बंद हो रहे हैं और हम अपने जरूरत के लिए विदेश और
विदेशी वस्तुओं पर निर्भर होते जा रहे हैं.
देश मे विदेशी घटिया और सस्ता सामान विशेष कर चीन का हमारे लघु उद्योग, हथकरघा उद्योग, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग धन्धों को बंद करने पर तुली हुई हैं.
यानी उत्पादन और बिक्री विदेशी
भारतीय कर्मचारी की सहायता से करें तथा उससे मुनाफा कमा कर बाहर ले
जायेँ , और उपभोग भारतीय जनता करे. इटालियन पिज्जा, पास्ता, नूडल्स , बर्गर , तले हुए चिकेन , ओट्स (जै) और विदेशी ब्रांड के खाद्यान और
परिधान के वस्तु जैसे – लीवाइस, जॉकि ,पीटर इंग्लैंड आदि ब्रांड, पब और डिस्को संस्कृति, फास्ट-फूड
कल्चर इत्यादि ने
भारतीय संस्कृति पर आहिस्ता आहिस्ता अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया है इन सबके कारण
महिलाओं और किशोरियों का उत्पीड़न देश मे लगातार बढ़ रहा है . देशी भावना से मिली आजादी और राष्ट्र पिता
महात्मा गाँधी का स्वदेशी सपना आज कांग्रेस सरकार के विदेशी प्रेम के हत्थे शहीद हो
गया है. आज देश मे स्वदेश और स्वदेशी संस्कृति को कुचल कर विदेश और विदेशी वस्तुओं
और संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है. सामाजिक जीवन जो प्रशासनिक व्यवस्था, आर्थिक विकास और तत्कालीन धार्मिक झुकाव को दर्शाता है, सभी का झुकाव और रूपान्तरण आज विदेशी निर्भरता और सभ्यता की ओर हो रहा है
.ऐसा लगता है कि इस यूपीए सरकार का उद्देश्य भारतवर्ष की जनता को आत्मनिर्भर और स्वलम्बी बनाने का नहीं बल्कि पराश्रित और निर्भर बना कर वोटबैंक के रूप मे सदा उपयोग करने
का है.
राजनीतिक नैतिक मूल्यों मे गिरावट की पराकाष्ठा
तो तब हो गयी जब इस सरकार ने गरीबी निर्धारण के पैमाने की घोषणा मे बदलाव लाकर
ग्रामीण इलाको मे रहने वाली जनता जिसकी प्रतिदिन की कमाई 27 रुपये 20 पैसे से अधिक
और शहरी इलाके मे जिनकी 33 रुपये 30 पैसे से अधिक हो, को गरीबी
रेखा से बाहर कर दिया. खुद को समाज के गरीब वर्ग की हितैषी बताने वाली संप्रग सरकार
ने गरीबों की गुरबत का माखौल उड़ाते हुए उनकी आय में एक रुपये का इजाफा दिखाकर 17 करोड़
लोगों को इस श्रेणी से बाहर कर दिया है.
चाणक्यनीति
मे यह कहा गया है- “किसी देश के प्रधानमंत्री का पद, सेनापति का पद और गुप्तचर विभाग का पद किसी भी ऐसे व्यक्ति के हाथ मे मत देना
जिसकी पत्नी या वो स्वंय विदेशी हो.” आज हम सभी जानते हैं कि केंद्र की इस सरकार का “मनमोहन सिंह संचालन करते हैं और सोनिया गाँधी
निर्णय लेती हैं “. इस सरकार का नियंत्रण काँग्रेस अध्यक्ष और गाँधी परिवार के हाथ मे रहता है, जो एक विदेशी महिला हैं और मीडिया रिपोर्ट को सच माना जाए तो, उन्होने अभी तक अपने विदेशी नागरिकता का परित्याग नहीं किया है. इन कारणों से इस सरकार के सत्ता के विभिन्न केन्द्र हैं और जिससे इस सरकार में हमेशा अनिर्णय की स्थिति बनी
रहती है . ईमानदारी और निष्ठा मे कमी के चलते यह संप्रग सरकार निर्णय नहीं ले रही है, जिससे 17 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हुई. सरकार
के पंगु बने रहने के कारण लंबित परियोजनाओं का अंबार सा लग गया है.
संप्रग
सरकार और उसके सहयोगी पार्टियाँ जैसे बिहार में जदयू, जिन्हे हिन्दू या हिन्दी संस्कृति की समझ ही नहीं है ने अपनी कमियों को छुपाने के लिए हमारी संस्कृति हिन्दुत्व
और इस संस्कृति को बरकरार रखने मे प्रयासरत संस्थाओं और पार्टियों को ही साम्प्रदायिक होने का प्रचार करने का काम किया हैं . वे वोटबैंक की रणनीति के तहत भारतीय समाज को हिन्दू , मुसलमान , दलित –
महादलित , अगड़े – पिछड़े मे बाँट कर राष्ट्र का ध्यान मुख्य
मुद्दों से हटाने कि कोशीश
कर रहे हैं. 1995 के अपने एक आदेश से माननीय
उच्चतम न्यायालय ने हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म को भारत वासियों की जीवन जीने की शैली
के रूप मे परिभाषित किया है . हिन्दुत्व ने सदियों से मुसलमानों और हिन्दुओं में एकता
कायम की है और रहीम, कबीर,
रामदास और महात्मा
गाँधी इत्यादि कई संतों और मौलवियों ने इसी धारा पर काम कर राष्ट्र को एकता और सद्
–भावना के सूत्र मे बांधा है . उसी हिन्दुत्व और भारत की संस्कृति को ये लोग वोटबैंक की कूटनीति
के तहत बदनाम और नष्ट करने पर तुले हुए
हैं . यह हमारी संस्कृति और सभ्यता पर कठोर आघात है जिसे
हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे. आज मुस्लिम
तुष्टीकरण के सिद्धान्त पर चलकर आम आवाम और राष्ट्र और उसके संसाधनों को बांटने की
पूरजोर कोशीश की जा रही है. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को
धर्म के खिलाफ लडाई बना कर कुछ राजनीतिक पार्टियां अपने को धर्मनिरपेक्ष सिद्ध कर
रहे हैं और तो और आतंक की जांच कर रही सरकारी जांच एजेंसियों (आईबी और सीबीआई) में
धार्मिक आधार पर फूट डाल कर अपने को धर्मनिरपेक्ष बनने की भरपूर कोशीश कर रहें हैं. “फूट डालो और राज करो” की नीतियों पर चलकर भी ये अपने को धर्मनिरपेक्ष कह रहे हैं. आज सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सभी को विकास का लाभ और किसी का तुष्टीकरण नहीं की नीति की बात करने
वाले हमारी पार्टी भाजपा को सांप्रदायिक कहा जा रहा है . क्या
विडम्बना है !
बिहार
का तो किस्सा (कथा) और भी निराला है - कल तक इशरत जहाँ एन्काउंटर के लिए 'आई.बी.' और उसके डायरेक्टर को कोसने वाले
कांग्रेसी (और
आज बिहार मे इनके सहयोग से बनी सरकार) आज छाती ठोक कर कह रहे हैँ 'आई.बी.' ने तो बिहार को अपनी जानकारी दे दी थी, बिहार सरकार ने ही उस पर एक्शन नहीं लिया. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से
हाल ही में अलग हुए जनता दल (युनाइटेड) ने
तो तब हद ही कर दी जब इशरत को बिहार की बेटी
बताकर महिमामंडित किया और भाजपा को निशाना बनाने लगे. अमेरिकी आतंकी हेडली जिसका लश्कर-ए-तैयबा से सम्बंध था, ने अपने इक़बालिया बयान मे इशरत जहाँ
को भी इस संगठन से जुड़े रहने की बात कबूल की है. पिछले कुछ समय में इंडियन मुजाहिदीन से ताल्लुक रखने के आरोप में
गिरफ्तार 13 लोगों में 12 के दरभंगा और उसके आसपास के होने से मिथिलांचल को इस आतंकी संगठन
के गढ़ के रूप में देखा जाने लगा और इसे राष्ट्रीय जांच
एजेंसी (एनआइए) द्वारा दरभंगा मॉड्यूल के नाम से सम्बोधित किया जा रहा है . देश में
विभिन्न जगहों पर हुए बम विस्फोटों में लिप्तता के आरोप में पिछले कुछ समय में गिरफ्तार
हुए लोगों में यासीन भटकल, असादुल्लाह रहमान उर्फ दिलकश, कफील अहमद, तलहा अब्दाली उर्फ इसरार, मुहम्मद तारिक अंजुमन,
हारून राशिद नाइक, नकी अहमद, वसी अहमद शेख, नदीम अख्तर, अशफाक
शेख, मुहम्मद आदिल, मुहम्मद इरशाद,
गयूर अहमद जमाली और आफताब आलम उर्फ फारूक शामिल हैं. इनमें से एक मुहम्मद
आदिल पाकिस्तान का है, बाकी 12 दरभंगा जिले के बाशिंदे हैं. आज
बिहार सरकार के मुसलमानों को वोटबैंक के
रूप मे देखने के रवैये ने दरभंगा और मधुबनी को भारत के आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के गढ़ के रूप में स्थापित करने मे
मद्दत की है और यहाँ के प्रशासनिक तंत्र कि पोल खोल दी है. अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की
नीति जो नीतिशजी ने अपनाई है इससे बिहार में आतंकियों की गतिविधियां तेज हुई हैं. उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ने के बाद जो कैलकूलेशन
की थी वह सब गड़बड़ा गई है. जब से भाजपा नीतीश सरकार से अलग हुई है तब से नीतीश का
ग्रॉफ गिरता जा रहा है. पिछले कुछ समय से न तो वह विकास की बात करते हैं और न ही बिहार
में कानून व्यवस्था की बस उनका एक ही टॉपिक है भाजपा और नरेन्द्र मोदी.
जब यह यूपीए सरकार आई थी तो उसने यह जनता से
वादा किया था कि सौ दिन में महँगाई कम कर देंगे, ऐसे झूठे वादे वे बार-
बार देश की जनता को करते रहे, परन्तु इस पूरे शासनकाल में महंगाई पर लगाम
लगाने की एक भी ईमानदार कोशीश नहीं
की गई . मंहगाई दर राजग सरकार मे औसतन 3.8 प्रतिशत रह गई थी जो आज इस केन्द्र सरकार
की गलत आर्थिक नीतियों के कारण 10 प्रतिशत से ज्यादा हो गयी है . जब यूपीए ने अपना
शासन आरंभ किया था तो विरासत मे मिली मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण विकास दर ठीक ठाक
रहा परंतु आज यह घट कर 5
प्रतिशत से नीचे रह गया है . लगातार साल दर साल बढ़ रहे बजट
में घाटा (जिसमे राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा शामिल है), और विकास और उत्पादन के मद मे हुए खर्चों के अनुपात मे, लोक कल्याण में हुए खर्चों और वोटबैंक
बढ़ाने वाले लोक-लुभावन योजनाओं के मद में खर्चे
का बजट के अनुपात मे लगातार बढ़ोतरी, ने राष्ट्र के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल असर
डाला जिससे महंगाई पर इस सरकार का नियंत्रण नहीं रहा और पूरे राष्ट्र में उत्पादन घटने
लगा . महंगाई के कारण तैयार माल और खाद्यानों की लागत और उसका मूल्य लगातार बढ़ता रहा
. इस
घटते हुए उत्पादन और बढ़ती हुई जनसंख्या ने वस्तुओं की आपूर्ति में जबर्दस्त कमी कर
दी. इन सबका प्रतिकूल प्रभाव
अर्थव्यवस्था पर पड़ा और एक्सपोर्ट या निर्यात भी घटने लगा और माल की आपूर्ति बनाये
रखने के लिए विदेशों से माल आयात किया जाने लगा, जिससे विदेशी मुद्रा
का भण्डार कम हो गया और चालू खाता घाटा में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है . भारत स्थित विदेशी
निवेश करने वाली कंपनीयों के लाभांश बाहर के देशों मे भेजने से यह संकट और भी बढ़ गया है. 2010 मे विदेश मे भेजा गया यह लाभांश 4 अरब डॉलर था जो अब बढ़कर 12 अरब
डॉलर या
₹ 747.48 अरब रूपये
का हो गया है. बढ़ते
हुए इस अनुत्पादक और
गैरज़रूरी खर्च में खूब
भ्रष्टाचार हुआ है और इसको बरकरार रखने के लिए देश और विदेश दोनों से खूब कर्ज लिया गया है . आईएमएफ़ के अप्रैल 2011 के डाटा के अनुसार भारतवर्ष का कुल सरकारी ऋण आज
विश्व के सभी उभरती (प्रगतिशील) अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे अधिक है, और यह इसके सकल घरेलू उत्पाद का 68.05% है. देश का कुल वाणिज्यिक कर्ज जो कुल विदेशी कर्ज का
31 फीसदी हिस्सा हैं आज 24,127.56 खरब रूपये का है. इसमे से 25 % अल्प अवधि का कर्ज
है जिसका भुगतान 31 मार्च 2014 तक कर देना है. यह आँकड़ा मार्च
2008 मे मात्र 338.40 खरब रुपया था, जो 2008-09 में देश के चालू खाता घाटा का 2.5 % था अब 2012-13 मे यह बढ़
कर 5 % का हो गया है . चालू खाता घाटा की इस बढ़ोतरी का भुगतान ज़्यादातर पुनः कर्ज
ले कर इस सरकार मे हो रहा है. प्रवासी भारतियों के डिपॉजिट और चालू खाता मे जमा
अन्य डिपॉज़िट में मिले विदेशी पैसे, अगर रूपये के अवमूल्यन
या भारतीय अर्थव्यवस्था मे गिरावट से हुए
अविश्वास के या और किसी भी कारण से कम हो गया, तो देश एक
विषम आर्थिक कुचक्र मे फँसता चला जायेगा. कर्ज लेकर घी पीने वाली कहावत आज
हिंदुस्तान पर सार्थक हो रही है .
हद तो तब हो गई जब इस विदेशी माल को बेचने
के लिए भी विदेशों व्यापारियों को खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के अनुमती देकर आमंत्रित
किया गया . इससे हमारे देश के 4.5 करोड़ खुदरा दूकानदारों और उसपर आश्रित 30 करोड़ लोग
के रोजी रोटी का सवाल उठ खड़ा हुआ है. पी. चिदंबरम केन्द्रीय वित्त मंत्री ने इंग्लैंड मे जाकर यह बयान
दिया है जिससे इस सरकार की मनसा स्पष्ट होती है –“ईस्ट इंडिया कंपनी
400 साल भारत मे व्यापार कर मुनाफा किया है,
मैं आपको फिर निमंत्रण
देने आया हूँ अगले 200 सालोंके लिए आप फिर भारत चले आयें !देअर विल बी ह्यूज रिवॉर्ड
फॉर इंडिया – “
जब 2004
में यु पी ए सरकार ने
सत्ता संभाली थी तो उसे विरासत में एक स्वस्थ और मजबूत अर्थव्यवस्था प्राप्त हुई थी.
आर्थिक सर्वेक्षण , महंगाई , चालू खाता घाटा , बजट घाटा, रूपये के अवमूल्यन सभी इस बात को दर्शाते हैं
कि इस सरकार ने विरासत में मिली मजबूत अर्थव्यवस्था
को बरबादी के कागार पर खड़ा कर दिया है . इनमें
से किसी का विश्व के आर्थिक व्यवस्था से सम्बन्ध
नहीं है . इस सरकार ने न केवल भाजपा गठबंधन में लाये आर्थिक सुधारों को रोक दिया, बल्कि उसको उल्टी दिशा में ले गए और एन डी ए सरकार ने राजमार्गों के विकास
,नदियों को एक दूसरे से जोड़ने और पेंशन सुधार जैसे जो उपयोगी कदम उठाये उसे
जहाँ के तहां रोक दिया . भारतवर्ष की 50 % जनता आज अपने जीवनयापन के लिए
कृषि और संबद्धित कार्यकलाप पर
निर्भर करती है परंतु उनकी आय भारतवर्ष के
कुल सकल घरेलू उत्पाद मे 16.6% ही है .
अमेरिका के बाद विश्व मे सबसे ज्यादा कृषि-योग्य
भूमि भारत मे ही है परंतु वर्षो से चली आ रही गलत आर्थिक और राजनीतिक नीतियों के
कारण यहाँ इस क्षेत्र मे उत्पादकता विश्वस्तरीय नहीं है और विश्व के सबसे उच्च स्तर के
पैदावार से भारत की औसत कृषि उपज
30% से 50% है . किसान आज भी गरीब है, और उसे आज भी अपने कृषि के लिए मौसम और प्रकृतिक वर्षा पर
निर्भर रहना पड़ता है. भूजल से निकाले गए जल से सिचाई का खर्च डीजल और बिजली के
महंगे होने से बहुत पड़ता है, और इससे किसानो को फायदा भी नहीं
होता. डीजल के कृषि मे उपयोग से देश को विदेशी मुद्रा ज्यादा खर्च करनी पड़ती है
जिससे देश का चालू- खाता घाटा और भी बढ़ जाता है .भारत मे आज 52.6% भूमि मे ही सिंचाई
व्यवस्था है जबकि यह दुनिया के सबसे आद्र प्रदेशो मे से एक है. भारतवर्ष मे औसतन
हर साल वर्षा 47.6 इंच होती है और कुल अवक्षेपण (वर्षण) 4000 अरब घन मीटर है इसमे से मात्र 1123 अरब घन
मीटर का ही उपयोग हो पाता है बाकी पानी बर्बाद होकर नदियों के रास्ते बहकर समुद्र
मे चला जाता है , जो हमारे देश कि प्राकृतिक सम्पदा की बरबादी है .इस सम्पदा
के समुचित कृषि और संबद्धित कार्यकलाप मे उपयोग मे लाने के लिए एनडीए कि सरकार ने
नदियों को एक दूसरे
से जोड़ने की
व्यवस्था की थी और इसके लिए प्रचुर धन का आबंटन 2004 के बजट मे किया, जिसे रोककर यूपीए ने अनुत्पादक और गैरज़रूरी खर्चों मे
इसका आबंटन कर दिया . आज देश मे अनाज, सब्जी, फल आदि की महँगाई इसी गलत यूपीए सरकार की नीति का परिणाम है.
अर्थशास्त्र
के सिद्धान्त के अनुसार जब जब माल (वस्तुओं )की आपूर्ति मांग से अधिक होती है तो वस्तुओं की कीमत घटती है
और जब जब माल की मांग उस वस्तु की आपूर्ति से अधिक होती है तो वस्तुओं की कीमत बढ़ती है . इसी सिद्धान्त ने
अपने प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर दिखाना शुरू कर दिया और चीजें महंगी होने लगी
. कृषि उत्पादन और औद्योगिक विकास मे लगातार घटोतरी को आँकड़ो मे हेराफेरी कर ,प्रगति सूचिकांक सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी को लगातार ऊँचे स्तर पर बढ़ाए रखा गया. आरंभ के वर्षो मे मूल अंक( बेस) मूल्य
सूचकांक (थोक और खुदरा कृषि और औद्योगिक उत्पादन के मूल्य ) और अन्य सूचकांक और आँकड़ो
मे हेराफेरी कर जीडीपी दर को उच्च स्तर पर रखने की भरपूर कोशिश की गई और कुछ हद तक
वह सफल भी रही.
पिछले
एक दशक से देश की सत्ता को संचालित करती काँग्रेस नेतृत्व की यूपीए (संप्रग) सरकार ने भ्रष्टाचार और महंगाई
के सभी रिकार्ड तोड़ दिया है. ऐसी कमजोर व दिशाहीन सरकार और उसके सहयोगियों ने देश को घोर आर्थिक, सामरिक और राजनैतिक संकट में ढकेल दिया है. चीन और पाकिस्तान आए दिन हमारी सीमाओं मे घुस आते
हैं. आतंकवाद को प्रोत्साहित कर निरीह (निर्दोष)
जनता को परेशान तो करते ही हैं , धोखे से हमारे वीर सैनिकों के सर भी काट कर अपने साथ
ले जा रहे हैं. अमेरिका का क्या कहना अब तो छोटे छोटे देश भी हमेँ और हमारे राजनयिकों
को आँख दिखा रहे हैं . इंडियन मुजाहिद्दीन और लश्करे तोएबा जैसे संगठन देश और बिहार के हर कोने
मे अपना पैर पसार चुके हैं . सिरियल बम धमाके से हमारे धार्मिक स्थल चाहे वह बोधगया हो या अक्षरधाम मंदिर, गांधीनगर या सार्वजनिक स्थल जैसे गाँधी मैदान पटना , हैदराबाद के मार्केटिंग एरिया या अहमदाबाद और जयपुर के भीड़ भरे इलाके, कोई स्थान आज सुरक्षित नहीं है. जहाँ आज आम आवाम और जनता महंगाई , भ्रष्टाचार, नक्सलवाद और आतंकवाद से त्रस्त है और चारो
ओर हायतौबा मची हुई है वहीं केंद्र सरकार के मंत्रियों और राजनेता कह रहे
हैं कि कहां है भ्रष्टाचार, आतंकवाद या महँगाई . उन्हे यह सब सिर्फ विपक्ष का आरोप और एजेंडा लग रहा है . उन्हे
आज भी भ्रष्टाचार, आतंक और महंगाई कहीं नजर नहीं आती है और इस
संदर्भ मे वे बेतुकी अनर्गल बयानबाजी कर जनता के जख्मों पर नमक लगा रहे हैं .
आज काँग्रेस और करप्सन (भ्रष्टाचार) पर्यायवाची
(समानार्थी) शब्द बन गए हैं, जहां भी काँग्रेस या उसके सहयोग से बनी सरकारें हैं, वहीं भ्रष्टाचार बढ़ा है . इन्होने देश की हर सम्पदा को लूटा है , चाहे वह आसमान का हो, जमीन का या पाताल में और अब वह जनता के जेब
(पाकिट) मे हाथ डाल कर उसे लूट रही है . इस यूपीए सरकार ने 2 जी स्पेक्ट्रम (आकाशीय
तरंग) की नीलामी (इससे मोबाइल और इंटरनेट आदि
सेवाएँ संचालित होती हैं) और वेस्टलैंड हेलिकोप्टर
बिक्री मे अरबों, खरबों रूपये का घोटाला कर देश के आकाश को लूटा
, जमीन पर तो कई घोटाले हुए हैं जैसे आदर्श सोसाइटी घोटाला (जहाँ सेना की जमीन
सोसाइटी को फ्लॅट के लिए दे कर राजनेता और नौकरशाही ने मिलकर लूटा ), कॉमन वैल्थ खेल घोटाला, दामाद घोटाला ( जहाँ सोनिया गांधी के दामाद
को प्रशासन और बिल्डर द्वारा अरबों का फायदा पहुंचाया गया) , टट्रा सेना के ट्रक में घोटाला इत्यादि , इन्होने पाताल को भी नहीं छोड़ा है और कोयला के 142 ब्लॉक को 145 प्राइवेट
कंपनीयों को 2006-2009 के बीच नियमों को ताक पर रख लगभग मुफ्त मे दे दिया और देश की
1700 करोड़ टन की कोयले को जिसकी कीमत लगभग 51 लाख करोड़ है , यूपीए सरकार के केन्द्रीय मंत्री और
काँग्रेस के सभासदों ( एम पी ) के रिश्तेदार और उनके निकट के जानने वाले को आबंटित कर मिल
बाँट कर खाया . ज्ञात हो कि इस घोटाले में कोयला मंत्रालय के साथ साथ प्रधान मंत्री कार्यालय भी लिप्त पाये गये है .
अंतिम
घोटाला है आम आदमी के पॉकेट का घोटाला जो रूपये के अवमूल्यन ( मूल्य गिरने से ) और यूपीए सरकार द्वारा रचित कमरतोड़ महँगाई जिसके कारण
आम आदमी को भीषण कष्ट झेलना पड़ रहा है . आज आम जनता अपनी जेब मे रुपया लेकर बाहर निकलता
है तो अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है उसकी स्थिति यह होती है कि वह इस रूपये से क्या खरीदे और क्या न खरीदे . हर वस्तु की कीमत दिन दोगुनी रात चौगिनी
बढ़ती जा रही है और अब रूपये के अवमूल्यन से घटती इसके क्रय शक्ति के
कारण आम आदमी की स्थिति और भी विषम हो रही है और उसका जीना और मुश्किल हो रहा है. भारत
की जनता आज जहाँ निर्धनता, कुपोषण, बेरोजगारी, अभावों से जूझ रही है, वहीं संप्रग सरकार के राजनीतिज्ञ और नौकरशाह
भष्ट्राचार से लूटे धन को विदेशों में जमा करने और अन्धाधुन खर्च करने पर तुले हुए हैं जिससे महंगाई और बढ़ रही है.
बिहार में इस काम को सरकारी अफसर और जदयू के नेता मिल कर अंजाम दे रहें हैं. यहाँ ऑफिसरशाही और भष्ट्राचार आज चरम
सीमा पर है. स्विस बैंक
असोशिएशन के आंकड़ो के अनुसार स्विस बैंकों में
भारतवर्ष का 1,45,600 करोड़ यूएस डॉलर यानी ₹ 90,54,136 करोड़
रूपये काला धन जमा है . विदेशी मीडिया के अनुसार विश्व के दस सबसे अमीर
राजनैतिज्ञों मे से आज भारत के दो कांग्रेसी महिला सांसद हैं.
विश्व की सभी प्रगतिशील सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था
को देश मे उत्पादन ( माल और सेवाएँ) वाली योजनाओं
में प्रोत्साहन देकर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी०डी०पी०) को बढ़ाने का अथक प्रयत्न करती
हैं , इसके लिए पूंजीगत निवेश में वृद्धि कर और उसमे
प्रोत्साहन देकर देश में उद्योग धंधो, कृषि,
रोजगार बढ़ाने या स्वरोजगार
को सहायता देने वाले योजना और आधारभूत संरचना के मद में खर्च का प्रतिशत लगातार बढ़ाते
रहती हैं, उनका प्रयास देश और
उसकी जनता उनकी संस्थाओं को स्वालम्बी बनाना रहता है, जिससे भविष्य मे अपने इस पूंजी निवेश से, उनपर ‘कर’
लगा कर और विकास किया
जा सके . आम आवाम का सर्वांगीण विकास ही उनका एक मात्र उद्देश्य और लक्ष्य होता है . मनमोहन सिंह कि यह शायद विश्व कि पहली सरकार है, जिसने उपभोग व्यय और खपत व्यय को प्रोत्साहन देते हुए हमारी अर्थव्यवस्था
का बाजारीकरण कर उपभोक्तावाद की नीतियों की ओर ढकेल दिया है . आज देश में उद्योग धंधो, कृषि, रोजगार बढ़ाने या स्वरोजगार आधारभूत संरचना
के
मद में पूंजी निवेश को उपेक्षा कर, उपभोगी खर्च जैसे खाद्य सुरक्षा, इन्दिरा आवास योजना, मनरेगा, वृद्धा पेंशन, विभिन्न
सब्सिडि योजनाएँ आदि लोक लुभावन और वोटबैंक बढ़ाने वाले मद में
खर्चे को बढ़ावा दिया जा रहा
है,
जिससे हमारी अर्थव्यवस्था
उत्पादक की न होकर उपभोगी देश की हो गयी है. हद तो यह है की हमारी सरकार विदेशी निवेशकों से ऐसा
व्यापार सम्झौता करती है जिससे वे अपना कच्चा माल हमें भेजते हैं एवं मामूली कीमत
पर उत्पादन हमारे देश के ठीकेदारों (और उनके उत्पादनकरने वाली कंपनीयों) से करवाते
हैं फिर उत्पादित मालों पर उसकी कीमत वे तय कर, मनमानी रेट टैग इन ठीकेदारों से ही
लगवाते हैं. इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हमारे द्वारा उत्पादित माल विदेशों कि
तुलना मे हमें ही महंगी मिलती हैं. आज स्वदेशी उद्योग धन्धे बंद हो रहे हैं और हम अपने जरूरत के लिए विदेश और
विदेशी वस्तुओं पर निर्भर होते जा रहे हैं.
देश मे विदेशी घटिया और सस्ता सामान विशेष कर चीन का हमारे लघु उद्योग, हथकरघा उद्योग, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग धन्धों को बंद करने पर तुली हुई हैं.
यानी उत्पादन और बिक्री विदेशी
भारतीय कर्मचारी की सहायता से करें तथा उससे मुनाफा कमा कर बाहर ले
जायेँ , और उपभोग भारतीय जनता करे. इटालियन पिज्जा, पास्ता, नूडल्स , बर्गर , तले हुए चिकेन , ओट्स (जै) और विदेशी ब्रांड के खाद्यान और
परिधान के वस्तु जैसे – लीवाइस, जॉकि ,पीटर इंग्लैंड आदि ब्रांड, पब और डिस्को संस्कृति, फास्ट-फूड
कल्चर इत्यादि ने
भारतीय संस्कृति पर आहिस्ता आहिस्ता अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया है इन सबके कारण
महिलाओं और किशोरियों का उत्पीड़न देश मे लगातार बढ़ रहा है . देशी भावना से मिली आजादी और राष्ट्र पिता
महात्मा गाँधी का स्वदेशी सपना आज कांग्रेस सरकार के विदेशी प्रेम के हत्थे शहीद हो
गया है. आज देश मे स्वदेश और स्वदेशी संस्कृति को कुचल कर विदेश और विदेशी वस्तुओं
और संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है. सामाजिक जीवन जो प्रशासनिक व्यवस्था, आर्थिक विकास और तत्कालीन धार्मिक झुकाव को दर्शाता है, सभी का झुकाव और रूपान्तरण आज विदेशी निर्भरता और सभ्यता की ओर हो रहा है
.ऐसा लगता है कि इस यूपीए सरकार का उद्देश्य भारतवर्ष की जनता को आत्मनिर्भर और स्वलम्बी बनाने का नहीं बल्कि पराश्रित और निर्भर बना कर वोटबैंक के रूप मे सदा उपयोग करने
का है.
राजनीतिक नैतिक मूल्यों मे गिरावट की पराकाष्ठा
तो तब हो गयी जब इस सरकार ने गरीबी निर्धारण के पैमाने की घोषणा मे बदलाव लाकर
ग्रामीण इलाको मे रहने वाली जनता जिसकी प्रतिदिन की कमाई 27 रुपये 20 पैसे से अधिक
और शहरी इलाके मे जिनकी 33 रुपये 30 पैसे से अधिक हो, को गरीबी
रेखा से बाहर कर दिया. खुद को समाज के गरीब वर्ग की हितैषी बताने वाली संप्रग सरकार
ने गरीबों की गुरबत का माखौल उड़ाते हुए उनकी आय में एक रुपये का इजाफा दिखाकर 17 करोड़
लोगों को इस श्रेणी से बाहर कर दिया है.
चाणक्यनीति
मे यह कहा गया है- “किसी देश के प्रधानमंत्री का पद, सेनापति का पद और गुप्तचर विभाग का पद किसी भी ऐसे व्यक्ति के हाथ मे मत देना
जिसकी पत्नी या वो स्वंय विदेशी हो.” आज हम सभी जानते हैं कि केंद्र की इस सरकार का “मनमोहन सिंह संचालन करते हैं और सोनिया गाँधी
निर्णय लेती हैं “. इस सरकार का नियंत्रण काँग्रेस अध्यक्ष और गाँधी परिवार के हाथ मे रहता है, जो एक विदेशी महिला हैं और मीडिया रिपोर्ट को सच माना जाए तो, उन्होने अभी तक अपने विदेशी नागरिकता का परित्याग नहीं किया है. इन कारणों से इस सरकार के सत्ता के विभिन्न केन्द्र हैं और जिससे इस सरकार में हमेशा अनिर्णय की स्थिति बनी
रहती है . ईमानदारी और निष्ठा मे कमी के चलते यह संप्रग सरकार निर्णय नहीं ले रही है, जिससे 17 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हुई. सरकार
के पंगु बने रहने के कारण लंबित परियोजनाओं का अंबार सा लग गया है.
संप्रग
सरकार और उसके सहयोगी पार्टियाँ जैसे बिहार में जदयू, जिन्हे हिन्दू या हिन्दी संस्कृति की समझ ही नहीं है ने अपनी कमियों को छुपाने के लिए हमारी संस्कृति हिन्दुत्व
और इस संस्कृति को बरकरार रखने मे प्रयासरत संस्थाओं और पार्टियों को ही साम्प्रदायिक होने का प्रचार करने का काम किया हैं . वे वोटबैंक की रणनीति के तहत भारतीय समाज को हिन्दू , मुसलमान , दलित –
महादलित , अगड़े – पिछड़े मे बाँट कर राष्ट्र का ध्यान मुख्य
मुद्दों से हटाने कि कोशीश
कर रहे हैं. 1995 के अपने एक आदेश से माननीय
उच्चतम न्यायालय ने हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म को भारत वासियों की जीवन जीने की शैली
के रूप मे परिभाषित किया है . हिन्दुत्व ने सदियों से मुसलमानों और हिन्दुओं में एकता
कायम की है और रहीम, कबीर,
रामदास और महात्मा
गाँधी इत्यादि कई संतों और मौलवियों ने इसी धारा पर काम कर राष्ट्र को एकता और सद्
–भावना के सूत्र मे बांधा है . उसी हिन्दुत्व और भारत की संस्कृति को ये लोग वोटबैंक की कूटनीति
के तहत बदनाम और नष्ट करने पर तुले हुए
हैं . यह हमारी संस्कृति और सभ्यता पर कठोर आघात है जिसे
हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे. आज मुस्लिम
तुष्टीकरण के सिद्धान्त पर चलकर आम आवाम और राष्ट्र और उसके संसाधनों को बांटने की
पूरजोर कोशीश की जा रही है. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को
धर्म के खिलाफ लडाई बना कर कुछ राजनीतिक पार्टियां अपने को धर्मनिरपेक्ष सिद्ध कर
रहे हैं और तो और आतंक की जांच कर रही सरकारी जांच एजेंसियों (आईबी और सीबीआई) में
धार्मिक आधार पर फूट डाल कर अपने को धर्मनिरपेक्ष बनने की भरपूर कोशीश कर रहें हैं. “फूट डालो और राज करो” की नीतियों पर चलकर भी ये अपने को धर्मनिरपेक्ष कह रहे हैं. आज सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सभी को विकास का लाभ और किसी का तुष्टीकरण नहीं की नीति की बात करने
वाले हमारी पार्टी भाजपा को सांप्रदायिक कहा जा रहा है . क्या
विडम्बना है !
बिहार
का तो किस्सा (कथा) और भी निराला है - कल तक इशरत जहाँ एन्काउंटर के लिए 'आई.बी.' और उसके डायरेक्टर को कोसने वाले
कांग्रेसी (और
आज बिहार मे इनके सहयोग से बनी सरकार) आज छाती ठोक कर कह रहे हैँ 'आई.बी.' ने तो बिहार को अपनी जानकारी दे दी थी, बिहार सरकार ने ही उस पर एक्शन नहीं लिया. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से
हाल ही में अलग हुए जनता दल (युनाइटेड) ने
तो तब हद ही कर दी जब इशरत को बिहार की बेटी
बताकर महिमामंडित किया और भाजपा को निशाना बनाने लगे. अमेरिकी आतंकी हेडली जिसका लश्कर-ए-तैयबा से सम्बंध था, ने अपने इक़बालिया बयान मे इशरत जहाँ
को भी इस संगठन से जुड़े रहने की बात कबूल की है. पिछले कुछ समय में इंडियन मुजाहिदीन से ताल्लुक रखने के आरोप में
गिरफ्तार 13 लोगों में 12 के दरभंगा और उसके आसपास के होने से मिथिलांचल को इस आतंकी संगठन
के गढ़ के रूप में देखा जाने लगा और इसे राष्ट्रीय जांच
एजेंसी (एनआइए) द्वारा दरभंगा मॉड्यूल के नाम से सम्बोधित किया जा रहा है . देश में
विभिन्न जगहों पर हुए बम विस्फोटों में लिप्तता के आरोप में पिछले कुछ समय में गिरफ्तार
हुए लोगों में यासीन भटकल, असादुल्लाह रहमान उर्फ दिलकश, कफील अहमद, तलहा अब्दाली उर्फ इसरार, मुहम्मद तारिक अंजुमन,
हारून राशिद नाइक, नकी अहमद, वसी अहमद शेख, नदीम अख्तर, अशफाक
शेख, मुहम्मद आदिल, मुहम्मद इरशाद,
गयूर अहमद जमाली और आफताब आलम उर्फ फारूक शामिल हैं. इनमें से एक मुहम्मद
आदिल पाकिस्तान का है, बाकी 12 दरभंगा जिले के बाशिंदे हैं. आज
बिहार सरकार के मुसलमानों को वोटबैंक के
रूप मे देखने के रवैये ने दरभंगा और मधुबनी को भारत के आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के गढ़ के रूप में स्थापित करने मे
मद्दत की है और यहाँ के प्रशासनिक तंत्र कि पोल खोल दी है. अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की
नीति जो नीतिशजी ने अपनाई है इससे बिहार में आतंकियों की गतिविधियां तेज हुई हैं. उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ने के बाद जो कैलकूलेशन
की थी वह सब गड़बड़ा गई है. जब से भाजपा नीतीश सरकार से अलग हुई है तब से नीतीश का
ग्रॉफ गिरता जा रहा है. पिछले कुछ समय से न तो वह विकास की बात करते हैं और न ही बिहार
में कानून व्यवस्था की बस उनका एक ही टॉपिक है भाजपा और नरेन्द्र मोदी.