WebCrawler

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का राजनैतिक जीवनदर्शन


पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म २५ सितम्बर १९१६ को मथुरा जिले के छोटे से नगला चन्द्रभान गाँव में हुआ था. उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे.                                                                
महान चिन्तक और संगठनकर्ता पंडितजी भारतीय जनसंघ के संगठन मंत्री थे . विलक्षण बुद्धि , सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ ५२ साल क उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए . अनाकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी दीनदयालजी  उच्च-कोटी के दार्शनिक थे किसी प्रकार का भौतिक माया – मोह उन्हें छु तक नहीं सका .
जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता दीनदयालजी का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुर्नरचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टी प्रदान करना था . उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी.
   दीनदयालजी को जनसंघ के आर्थिक नीति के रचनाकार बताया जाता है . आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य समान्य मानव का सुख है या उनका विचार था . विचार –स्वातंत्रय के इस युग में मानव कल्याण के लिए अनेक विचारधारा को पनपने का अवसर मिला है . इसमें साम्यवाद, पूंजीवाद , अन्त्योदय, सर्वोदय आदि मुख्य हैं . किन्तु चराचर जगत को सन्तुलित , स्वस्थ व सुंदर बनाकर मनुष्य मात्र पूर्णता की ओर ले जा सकने वाला एकमात्र प्रक्रम सनातन धर्म द्वारा प्रतिपादित जीवन – विज्ञान, जीवन –कला व जीवन–दर्शन है.
संस्कृतिनिष्ठा दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित  राजनैतिक जीवनदर्शन  का पहला सुत्र है उनके शब्दों में-  “ भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं . उनकी जीवन प्रणाली ,कला , साहित्य , दर्शन सब भारतीय संस्कृति है . इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है . इस संस्कृतिमें निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा .”
“वसुधैव कुटुम्बकम”  हमारी सभ्यता से प्रचलित है . इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मो,जातियों, अगड़ों , पिछड़ों , दलितों  को समान अधिकार प्राप्त हैं . संस्कृति से किसी व्यक्ति ,वर्ग , राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन,रुचि, आचार, विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है .  दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है . भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है की हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है .
मैं अपनी श्रद्धा सुमन इस महान आत्मा को समर्पित करता हूँ .

राष्ट्र और राष्ट्रीयता की परिभाषा संघ के अनुसार -

विनायक दामोदर सावरकर या वीर सावरकर ने हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा ('हिन्दुत्व') पर बहुत सारे श्लोक और  आलेख लिखे जिसके एक लेख को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  ने अपनाया है और जो हिन्दू की सही अर्थ में परिभाषा है . 

आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः

पितृभू पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः ॥


 सिंधु (सिंधु ) से सिंधु (दक्षिण मे हिन्द महासागर ) तक इस विस्तृत मातृ-भूमि को , जो पितृभूमि और पुण्यभूमि स्वीकार करता है , वही ' हिन्दू ' के नाम से जाना जाता है .

इस परिभाषा के अनुसार हिन्दू ,मुस्लिम , सिख, ईसाई, सवर्ण, दलित , पिछड़े, सब जो इस मातृ-भूमि को , पितृभूमि और पुण्यभूमि स्वीकार करते हैं सब हिन्दू हैं .

शब्द हिंदू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार , नृवंशतया अर्थात एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग हैं . यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक और  सांस्कृतिक,  रूप में वर्णित किया जाता था .जिसे  बाद  के कालखंड में   विदेशी आक्रमणकर्ताओं नें अपनी मंशा पूरी करने  हेतु धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया .

राष्ट्र समान्यतः राज्य या देशसे समझा जाता है . राष्ट्र का एक शाश्वत अथवा जीवंत अर्थ है एक राज्य में बसने वाले समस्त जन समूह जो एक समान संस्कृति से बंधे हों ”. राष्ट्रवाद की तात्कालिक युग में यही शाश्वत अर्थ है . इसका सजग उदाहरण इज़राइल है जो यहूदियों ( बंजारों ) का एक ऐसा समूह था जिसके पास पहले कोई जमीन भी नहीं था . अगर जन राष्ट्र का शरीर है तो संस्कृति इसकी आत्मा है जो लोगों को जोड़े रखता है . संस्कृति से किसी व्यक्ति , वर्ग , राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन ,रुचि , आचार विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है . दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है . भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है की हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है .1995 के अपने एक आदेश से माननीय उच्चतम न्यायालय ने हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म को भारत वासियों की जीवन जीने की शैली के रूप मे परिभाषित किया है . हिन्दुत्व ने सदियों से मुसलमानों, ईसाईयों और हिन्दुओं में एकता कायम की है और रहीम, कबीर, रामदास और महात्मा गाँधी इत्यादि कई संतों और मौलवियों ने इसी धारा पर काम कर राष्ट्र को एकता और सद् भावना के सूत्र मे बांधा है .