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बाली एक संस्मरण

                 बाली एक संस्मरण
जब हम लोग 21 जनवरी 2017 की रात 12:50 बजे कलकत्ता हवाई अड्डे से एयर एशिया की फ्लाइट संख्या AK-376  से बाली, इंडोनेशिया देश के एक टापू की ओर रवाना हुए थे तो हम सभी ने यह कल्पना भी नहीं की थी की हमारी यात्रा इतनी रोमांचक और मजेदार होगी . बाली इंडोनेशिया देश का एक प्रांत है जिसकी राजधानी डेनपासर है .इसका क्षेत्रफल 5,780  वर्ग किलोमीटर है . 2014 मे इसकी जनसंख्या 4,225,384 थी और यह  भूमध्य रेखा से 8 डिग्री - 39’  दक्षिण और 115 डिग्री – 13’ पूर्व  में औस्ट्रेलिया के निकट स्थित एक द्वीप  है जिसे हिन्दुत्व का द्वीप , शांति द्वीप  या देवताओं का द्वीप के नाम से भी जाना जाता है . यहाँ  83.5% हिन्दू 13.4% मुस्लिम  2.5% ईसाई और 0.5 %  बौद्ध आस्था के लोगों का निवास है और यहाँ  के निवासी मूलतः बाली प्रजाति (90%) के हैं . जावा (7%)  यहाँ दूसरी सबसे बड़ी प्रजाति है . इंडोनेशिया विश्व का सबसे बड़ा इस्लामिक देश ( और द्वीपीय देश भी ) है,  जहां मुसलमान समुदाय  बहुसंख्यक है और हिन्दु आबादी वहाँ अल्पसंख्यक है , सिर्फ बाली ही इस देश का  ऐसा द्वीप  है जहां हिन्दु समुदाय बहुसंख्यक  है . आबादी की दृष्टि से यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश है .
 हम 11 लोगों का समूह जब लगभग 4 घंटे की उड़ान के बाद , बाली जाने के क्रम में  मलेशिया की राजधानी कुआला लूमपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा,  तो वहाँ के विमानतल की सुंदरता  और सफाई ने हमें मंत्रमुग्ध कर दिया. लगभग 3½  घंटे बाद वहाँ से हमें बाली की हवाई उड़ान मिलने वाली थी और हमारे भारतीय समय के अनुसार रात के 3 बज कर 50 मिनट बज रहा था, जबकि मलेशिया के समय अनुसार वहाँ सुबह के 7:20 मिनट बज रहा था .हवाई अड्डे पर कुछ दुकाने ही खुली हुई थी जो मूलतः खाने-पीने का समान बेच रहे थे . हम लोगों ने वहाँ कौफ़ी पी तथा बच्चों ने कुछ अल्पाहार लिया.  हवाई पटल पर नजर गई तो  इंडोनेशिया की  राष्ट्रीय विमान सेवा की हवाई जहाज “गरुड” पर निगाह पड़ी, विदेशी हवाई जहाज का देशी नाम सुनकर आश्चर्य हुआ परंतु बहुत अच्छा भी लगा. एक इस्लामिक देश जहाँ हिन्दु अल्पसंख्यक हैं वहाँ लोगों ने विमान का यह हिन्दु प्रचलित नामकरण किया है, भारत में होता तो सारे राजनैतिक दल इसे सांप्रदायिकता का नाम देकर हल्ला मचाते.
कुआला लूमपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से हम सभी बाली के लिए विमान पकड़कर 2 1/2 घंटे के सफर के बाद बाली द्वीप के डेनपासर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे. बाली पहुंचने से पहले समुद्री सीमाओं से दोनों तरफ घीरे इस द्वीप का नज़ारा विमान से अद्भुत दिखा रहा था . एक तरफ जहाँ हिन्द महासागर तो दूसरी ओर प्रशांत महासागर से घीरा यह टापू उड़ान भर रहे विमान से  देखने से निराला लग  रहा था.  बाली का  हवाई अड्डा भी अत्यंत खूबसूरत, साफ और फूल – पौधों से सुसज्जित था. पूरे बाली प्रदेश मे सड़कें खूबसूरत और हरियाली से युक्त थी , सफाई और पर्यावरण का पूरा ध्यान द्वीप पर दिखा .हमारे लिए होटल की गाड़ी खड़ी थी , हमने उसे ओंबक लौट वीला, जो बाली के दक्षिण पश्चिम में केमागी समुद्र तट पर स्थित था चलने को कहा. गाड़ी मे उपस्थित गाइड ने हमे बताया कि आज यहाँ विद्या की देवी सरस्वती की पूजा है इसलिए त्योहार का वातावरण है. जानकर अत्यंत प्रसन्नता और उत्सुकता हुई, हमने फिर उस गाइड से वहाँ के सभ्यता और कौलेंडर के बारे मे प्रश्नों की झड़ी लगा दी .
जानकारी मिली की यहाँ बाली द्वीप का अलग कौलेंडर है, जो यहाँ के पुरोहित और ज्योतिष मिल कर निकालते हैं . यहाँ के समय के अनुसार हिंदुस्तान से 2½ घंटे पहले यहाँ सूर्योदय होता है जिसके कारण उनका चंद्र दिवस भी इसलिए हिंदुस्तान से अलग है, इसलिए यह असमानता है . यहाँ के हिन्दू अपने को बालिनीज़ हिन्दू  के नाम से अपनी पहचान बताते हैं . प्राचीन काल में बाली मे नौ हिन्दू पंथ निवास करते थे पशुपति , भैरवा , शिव-सिद्धांता, वैष्णव, बौद्ध,  रेसी , शोरा और  गणपत्य. हर पंथ के अलग-अलग देव और निजी पुरोहित होता है . बाली की संस्कृति में हिन्दू, चीन विशेष कर भारतीय संस्कृति का विशेष प्रभाव दिखा, इसकी शुरुआत प्रथम ईस्वी से हो गई थी. इस द्वीप पर कई मंदिर हैं , तथा सभी पंथ के अलग-अलग मंदिर हैं जिसमे सिर्फ उसी पंथ के लोगों के प्रवेश की अनुमति मिलती है . ऐसे कम ही मंदिर हैं जहाँ सभी हिंदुओं को दर्शन और पुजा करने की अनुमति है . यहाँ के प्रसिद्ध  मंदिरों मे पूरा बेसकिह ( जिसे मंदिरों की माता भी कहा जाता है ) , तनाह लॉट, उलूवाटू मंदिर , उलून डाणु बेरातन  मंदिर आदि प्रसिद्ध हैं. बाली की संस्कृति मे वहाँ के नृत्य का विशेष  महत्व है. बाली में वहाँ के नृत्य और संगीत सुनने का अवसर मिला . बाली की नृत्य शैली वहाँ के धर्म से जुड़ा है और भारत के दक्षिणी प्रदेश की  विशेष कर भरतनाट्यम नृत्य शैली का प्रभाव दिखा . यह बाली के स्थानीय शैली के साथ मिलकर एक विशेष प्रकार की भाव- भंगिमा, अभिनय युक्त नृत्य शैली का विकास हुआ है . हालांकि भारतवर्ष के नृत्य शैली में भाव – भंगिमा ज्यादा है और ऐसा मानना है कि भारतवर्ष से जावा द्वीप को इस नृत्य के संचारण के क्रम में कहीं विलुप्त हो गई है. बाली निवासी अपने नृत्य में हिन्दु  देवी दुर्गा, उमा, पार्वती और महाभारत और रामायण के कुछ कृतियों का भी प्रदर्शन करते हैं. वाद्य यंत्रों मे बाँसुरी, ड्रम, घंटियाँ और ढोलक इत्यादि का मिश्रण होता है . यहाँ के समुद्री तटों मे सेमीण्यक, कुटा और लेगीयन प्रमुख हैं. बाली के अधिकतर समुद्री तट पर काली ज्वालामुखी की रेत पायी जाती है , पर्ंतु सेमीण्यक तट अत्यंत सुंदर है और वहाँ की रेत उजली सुनहरी है.
     बाली का उबुद इलाका हतकरघा और हस्तशिल्प कला के लिए मशहूर है , विशेष कर चाँदी और सोने के जेवरात ,  ज्वालामुखी पत्थर की विशाल हिन्दु देवी देवताओं की मूर्तियां और लकड़ी से बने समान के लिए . यहाँ हर ग्राम में एक विशेष प्रकार की हस्तकला विकाशित है. यहाँ की बनी चाँदी के जेवरात की कारीगरी पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और विश्व के कई प्रसिद्ध स्वर्णकारों ने यहाँ अपनी कार्यशाला बना रखा है . बाली की पहाड़ी खेतों की कृषि पद्धति में वहाँ की प्राचीन सिचाई प्रणाली और उस पर निर्भर शानदार धान की फसल बहुत उत्तम और विकसित है और भारत के कुछ प्रदेशों के लिए यह सिचाई प्रणाली अनुकरणीय है.
  हम सभी लोगों ने इस यात्रा का भरपूर मजा लिया और खूब आनंद किया . मन मे इस अनोखे निराले द्वीप का चित्र बसाये हम सभी 26 जनवरी को वहाँ से अपने देश के लिए रवाना हुए . छः दिनों की बाली यात्रा यहाँ की संस्कृति व सभ्यता को समझने के लिए बहुत कम है, और ऐसा लगता है कि इस प्राचीन सभ्यता को समझने के लिए कम से कम एक महीना की यात्रा होनी चाहिए थी .         .                     

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