किसी देश का विकास वहाँ की
प्राकृतिक , मानवीय और सामाजिक संसाधनों पर निर्भर करता है . उस देश मे खनिज , ऊर्जा, जल, भौगोलिक संरचना, स्थिति,वहाँ का तापमान ,
वनष्पति, जैविक सम्पदा, उस देश के
लोगों की शारीरिक , मानसिक और वैचारिक क्षमता और पारिपक्वता, शिक्षा और वहाँ के समाज की संरचना इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. भारत
की कृषिपरक जलवायु क्षेत्रों की विशाल श्रृंखला, भूमि एवं वन का भण्डार, एवं जैव विविधता की संपन्नशीलता,
इसे विश्व के सर्वाधिक सम्पदा सम्पन्न राष्ट्रों में से एक
बनाती है.
भारत, 3287260 वर्ग किमी के भौगोलिक क्षेत्र के साथ विश्व का
सातवां सबसे बड़ा राष्ट्र है. संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ के अनुमानों के अनुसार भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का
20-21 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित हैं. भारत में प्रति व्यक्ति वन भूमि की उपलब्धता 0.08 हेक्टेयर
विश्व में सर्वाधिक कम है जबकि यह उपलब्धता विश्व में 0.64 हेक्टेयर (औसत) रूप से
एवं विकासशील राष्ट्रों में 0.50 हेक्टेयर है. वनों का क्षय एक अहम पर्यावरण
समस्या है. भारत में 3,60,400 वर्ग कि.मी. की जलीय क्षेत्र एवं औसत वर्षा 1100 मि.मी.
है . कुल जल संसाधन का 92 प्रतिशत सिंचाई के कार्य में प्रयुक्त होता है. भारत
में मछलियों की कुल 2546 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो सम्पूर्ण विश्व का 11.7
प्रतिशत है. भारत में विश्व के 4.4 प्रतिशत (197) उभयचरों की प्रजातियाँ भी पाई
जाती हैं. सन 2008 में भारत विश्व में समुद्री एवं स्वच्छ जल मछलियों का छठा सबसे
बड़ा उत्पादक एवं मत्स्यपालन मछलियों का द्वितीय सबसे बड़ा उत्पादक था. भारत
में 4 प्रकार के इंधन, 11 धात्विक (धातु तत्व वाले ),
52 अधात्विक एवं 22 लघु खनिजों का भण्डार है. भारत,
विश्व में कोयला भण्डार में चतुर्थ,
लौह अयस्क उत्पादक में पंचम, मैंगनीज अयस्क भण्डार में सप्तम ,
शीट माइका उत्पादन में प्रथम, बॉक्साइट भण्डार में पंचम एवं थोरियम में प्रथम स्थान रखता
है. भारत प्राकृतिक गैस के भंडार मामले में विश्व में 22वें स्थान पर आता है. देश
में लगभग 10% बिजली का निर्माण प्राकृतिक गैस से किया जाता है. देश में 647 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस के भण्डार होने
का अनुमान है.अंतर्राष्ट्रीय भू-गर्भिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में खनिज तेल का
भंडार 620 करोड़ टन है. तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ने भारत का कुल खनिज तेल भंडार
1750 लाख टन बताया है. भारत प्राकृतिक एवं मनुष्य-धन दोनों ही संसाधनों में धनी है.
यहाँ आवश्यकता मात्र प्राकृतिक संसाधनों के प्रभावपूर्ण एवं क्षमतापूर्ण दोहन की
है,
ताकि उसका अधिकतम कल्याण किया जा सके.
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जिससे किसी देश कि मात्रात्मक प्रगति की गणना की जाती है, वह
एक विशिष्ट समय में किसी देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी परिष्कृत वस्तुओं
और सेवाओं का कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य है. हालांकि जीडीपी की गणना आम तौर पर वार्षिक आधार पर की जाती
है लेकिन कभी-कभी इसकी गणना त्रैमासिक आधार पर भी की जाती है. किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन में जिन चीजों की आवश्यकता
होती है उन्हें उत्पादन के कारक या इनपुट कहते हैं .उत्पादन के मूलभूत कारक ये हैं- भूमि,
श्रम, पूँजी और उद्यमिता.
श्रम से व्यक्ति के कार्य करने की शारीरिक और मानसिक क्षमता
गणना होती है . भारतवर्ष में विभिन्न प्रजाति, वर्ग और शारीरिक मानसिक क्षमता की श्रम शक्ति मौजूद है . संयुक्त राष्ट्र के
मुताबिक, भारत दुनिया का ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा युवा रहते हैं.
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से इस समय देश की 27 फीसदी से ज्यादा आबादी युवा है .
यूएन के डाटा के अनुसार आज भारत में कार्ययोग्य श्रम शक्ति (15 – 59) विश्व में
सबसे अधिक है और 2090 तक यह राष्ट्र इसमें अग्रणि रहेगा .
पूँजी वह धन है जो व्यक्ति संचय कर या कर्ज लेकर अपने
उत्पादन मे लगाता है . आरबीआई के अनुसार यह दर मार्च 2021 में 28.2% है , जो काफी कम है और चिंतनीय विषय है. उद्यमिता
का अर्थ व्यवसाय एवं उद्योग में निहित विभिन्न अनिश्चितताओं एवं जोखिम का सामना
करने की योग्यता एवं प्रवृत्ति है. उद्यमिता समाज के लोगो में नये नये प्रयोग एवं
अनुसंधान करने तथा उपयोगिताओं का सृजन करने की योग्यताओं का विकास करके रोजगार के
अवसरों में वृद्धि को करने का कार्य करता है. भारत सरकार ने उद्यमिता विकास के लिए
भारतीय उद्यमशीलता संस्थान (आईआईई), उद्यमिता और कौशल विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय उद्यमिता लघु व्यवसाय विकास संस्थान ,राष्ट्रीय सूक्ष्म लघु मध्यम उद्यम संस्थान, स्किल डेव्लपमेंट कार्यक्रम, स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा योजना आदि कई कार्यक्र्म चलाये जा रहे हैं .
श्रम, पूँजी और उद्यमिता ये उत्पादन के कारक शब्द मानव के द्वारा संचालित है और
यह समाज की शिक्षा ,दक्षता , एकता और
सामाजिक भावना पर आधारित है . इसलिए व्यक्ति का निर्माण और मानव संसाधनों का विकास
आवश्यक है .
ऊपर लिखे सारे उत्पादन के कारक में बदलाव किया जा सकता है
परंतु भूमि की उपलब्धता सीमित है . जापान ने अपनी इस कमी को अपने सूझबुझ से,
समुद्र मे खेती कर, बहुमंजिलीय इमारत
बनाकर पूरी कर ली है . यहाँ यह बताना आवश्यक है कि 1947 मे जापान की प्रति किलो
मीटर जनसंख्या भारतवर्ष से लगभग तिगुनी थी.
भारतीय वैचारिक संपन्नता, अध्यात्म और बौद्धिक गुणों से परिपूर्ण हैं . अमेरिका के नेशनल साइन्स फ़ाउंडेशन के 2008 रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व में सबसे ज्यादा
इंजीनियर और विज्ञान स्नातक हैं जो पूरे विश्व का 25 % है . ट्विटर ,
माइक्रोसॉफ़्ट , अल्फ़ाबेट , आइ०बी०एम०, अडोब समेत विश्व की 10 बड़ी कंपनियों के सीईओ भारतीय हैं.
विश्व के सबसे बड़ी आइ० टी० कंपनी आई बी एम
में आज सबसे ज्यादा कार्यरत कर्मचारी
भारतीय हैं. विश्व सॉफ्टवेयर निर्यात में 12 प्रतिशत हिस्से के साथ सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है. भारत का आई ०टी० सेक्टर,
जिसने 2018-19 में शुद्ध निर्यात के माध्यम से 78 बिलियन
अमेरिकी डॉलर कमाया, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और रोबोटिक्स सहित नई तकनीकों में छलांग लगा
रहा है . सेवाओं के निर्यात के क्षेत्र में
भारत आगे है ,
और वर्ष 2020-21 में 10.5 प्रतिशत के दर से बढ़ा है . भारत
के जीडीपी मे इसका योगदान लगभग 50% है . मानव संसाधन भारत की सबसे बड़ी शक्ति है और
सेवा कार्यों जैसे पर्यटन, होटल, आई टी सोफ्टवेयर,
चिकित्सा सेवा इत्यादि का विकास और निर्यात कर भारत आर्थिक रूप से विकसित
देश बन सकता है.
समता ,समानता,आर्थिक अवसरों की कमी और भ्रष्टाचार के कारण भारतीय प्रतिभा
का पलायन दूसरे देशों मे हो रहा है . यू०एन० डीईएसए जनवरी 2021 के एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2020 के
बीच लगभग 1 करोड़ भारतीय प्रतिभा का पलायन दूसरे
देश में हो चुका है और अब वे अप्रवासी भारतीय बन गए हैं .
मनुष्य अपने कार्य
करने के लिए अपने मजबूत हाथों पर
निर्भर करता है जिसमें उसकी सभी अंगुलियां उस कार्य मे लगी रहती हैं .इसी तरह भारत को उन्नति
की ओर ले जाने के लिए समाज के सभी अंग दलित,अगड़े , पिछड़े,
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई सभी को एक जुट होकर एक दिशा
में कार्य करना होगा. एक मजबूत एवं उन्नत राष्ट्र के निर्माण के लिए यह परम-आवश्यक
है कि इसके नागरिकों में एकता और सद्भावना हो . एक संगठित समाज / राष्ट्र ही सामर्थ्यवान
होता है जहाँ समाज की शक्ति सार्थक दिशा में राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में एक जुट होती है .इसके
बिना राष्ट्र का विकास अधुरा रह जाता है . विश्व के सात बड़े विकसित देशों के समूह
जी– 7 का विचार करें, तो इसमें दो ऐसी आर्थिक शक्तियाँ हैं,
जिनको भारतवर्ष के साथ ही लगभग स्वतन्त्रता मिली तानाशाहों
से,
जापान और जर्मनी ये दो देश द्वितीय विश्वयुद्ध मे बुरी तरह तबाह हो गए थे.
काम करने वाले स्वस्थ लोग कम ही बचे थे , आर्थिक एवं राजनैतिक दबाव से ग्रसित थे तथा कर्ज के बोझ से
दबे हुए थे . इन राष्ट्रों में एक समानता
थी ,
इन प्रदेशों की जनता में राष्ट्रवाद की भावना कूट –कूट कर भरी हुई थी. आज ये देश विकसित हैं. इन राष्ट्रों ने
विकसित होने मे 20 साल से कम का समय लिया है .
महर्षि वेदव्यास के अनुसार – संघे शक्ति कलि युगे . अर्थात
कलयुग मे संगठन ही शक्ति है . ऋग्वेद के संगठन मंत्र के अनुसार :- सं गच्छध्वं सं
वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् --- आप परस्पर एक होकर रहें,
परस्पर मिलकर प्रेम से वार्तालाप करें समान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें. आप सभी एकमत होकर व विरोध त्याग करके अपना काम करें.
अथर्ववेद (6.64.2) में समानो मंत्रः समितिः
- - समानं चेतो अभिसंविशध्वम् । मनुष्यों के विचार तथा सभा सबके लिए समान
हो कहा गया है. एक विचार एवं सबको समान मौलिक शक्ति मिलने की बात कही है. व्यक्ति
और समाज में संघर्ष नहीं समन्वय होना चाहिए. व्यक्ति और समाज का संबंध परस्परपूरक , परस्परनुकुल तथा परस्पर सहयोग से होना चाहिए . इसमें जातिवाद ,
वर्गवाद , सांप्रदायवाद का कोई स्थान नहीं. व्यक्ति की पूर्णता ही
समाज की पूर्णता का माप है . व्यक्ति की
स्वतन्त्रता एवं समाजहित परस्पर विरोधी नहीं हैं .
भारतीय संस्कृति शिक्षा पर आधारित थी. शिक्षा का अर्थ मनुष्य
की आन्तरिक, अध्यात्मिक, रचनात्मक मानसिक विकास और आत्मिक इच्छापूर्ति के लिए
उपयुक्त प्रणाली, नियम, विधि और व्यवस्था विकसित करना था. शिक्षा प्रणाली गुणात्मक
और भारतीय दर्शन पर आधारित थी जो नैतिकता, सेवाभाव, त्याग ,
समर्पण , एकता और कर्तव्य भाव से परिपूर्ण थीं. इसलिए आज की शिक्षा प्रणाली मे नैतिक शिक्षा, रचनात्मक मानसिक और आत्मिक विकास और भारतीय सभ्यता के अनुसार कर्तव्य भाव
का ज्ञान तथा अनुभूति एक आवश्यक विषय होना
चाहिए . अनुशासित मर्यादापूर्ण आचरण, एकता, शारीरिक दृढ़ता के लिए खेल , योग और आसन , विज्ञान ,
प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति और राष्ट्रीयता को भी अनिवार्य रूप से हरेक बालक को पढाना राष्ट्र का प्रथम
कर्तव्य होना चाहिए. विज्ञान और अनुसंधान को प्राथमिकता और प्रोत्साहन मिले और
इसके लिए सरकार और गैर सरकारी संगठन उचित निवेश करें ऐसी व्यवस्था बनानी होगी . दक्ष
का पक्ष हमारा लक्ष्य होना चाहिए.
आज वोट बैंक की
रणनीति के तहत भारतीय समाज को तोड़ा जा रहा है और सामाजिक सदभाव की भावना को नुकसान
पहुंचाया जा रहा है . भ्रष्टाचार, शोषण, वर्गसंघर्ष से राष्ट्रीय भावना को गहरी चोट पहुँच रही है.दलित, गरीब, पिछड़े और वंचित
समाज का विकास नहीं हो रहा है . हाँ जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करने वाले
नेताओं का और उनके परिवार का जबर्दस्त आर्थिक-
सामाजिक और राजनीतिक विकास अवश्य हुआ है. इन नेताओं ने अपने ही जाति और धर्म के
लोगों के हक को लूट कर अपनी झोली भरी है, जिससे राष्ट्र 76
साल के बाद भी, अपने आर्थिक विकास काफी पीछे हो गया है. भारतीय
अर्थव्यवस्था और गणतन्त्र को भारत के अंदरूनी शक्तियों ने ही खोखला किया है. कानुन
व्यवस्था जो आर्थिक विकास का अहम स्तम्भ है ,रस्म आदायगी ही
रह गयी है. न्यायपालिका जो संविधान की जिम्मेवार संरक्षक है,
के न्यायालयों में लम्बित लाखों मुकदमों में ’न्याय में देरी के कारण अन्याय है. न्याय व्यवस्था और
संविधान कर्तव्य प्रधान हो, विधान के राज्य( रूल ऑफ लॉ ) से संचालित हो आज की सबसे अहम जरूरत है .
संसार में सब कुछ निर्माण करना बहुत सरल है,
परन्तु व्यक्ति का निर्माण करना अत्यन्त कठिन काम है. इसलिए
चाणक्य ने कहा है- ‘इषु: हन्यात् नवा हन्यात् इषुमुक्ते धन्ष्मत: किन्तु
बुध्दिता हन्यात् राष्ट्रं राजकम् । बुध्दिमतो पृष्टा हन्यात् राष्ट्रं सराजकम्॥’
बुध्दिमान की बुध्दि ठीक से चलने लगे तो अपनी बुध्दि की उत्कृष्टता
से राष्ट्र और राजा दोनों का परिवर्तन कर सकता है. इसलिए यह सिद्ध बात है कि
प्रबुध्दजन चिन्तन करें तो बहुत कुछ कर सकते हैं. समाज में हो रहे नैतिक गिरावट के
लिए बुध्दिजीवियों की अकर्मन्यता अधिक जिम्मेवार है, बनिस्पत कि आम आवाम द्वारा किए जा रहे निकृष्ट कर्म. व्यक्ति
निर्माण से मनुष्य के शरीर–बुद्धि-आत्मा सबका विकास हो , यही भारतीय जीवनदृष्टि है, जिसे हमें पुनः प्राप्त करना है .
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